केन्द्र सरकार की नई जैव ईंधन नीति के कारण उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और बिहार जैसे राज्यों में मक्का की पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इसका कारण ईथानाल है। सभी राज्यों ने अपने किसानों को प्रोत्साहित किया है कि वह ज्यादा उपज देने वाली मक्का की किस्मों को उगाकर योगदान करें। मक्का की पैदावार में किसानों को सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली ने मक्का की हाईब्रिड किस्म पूसा फोरेज मक्का हाइब्रिड-AFH-7 को विकसित किया है और इसे बुवाई के लिए किसानों को सलाह दी है। रबी सीजन में बुवाई के लिए यह किस्म उन इलाकों के लिए उपयुक्त बताई गई है जहां सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था है। किसानों को ठंड के मौसम में हरे चारे के रूप में इसकी बुवाई की सलाह दी गई है।
गौरतलब है कि पूसा फोरेज मक्का हाइब्रिड- (AFH-7) किस्म की बुवाई से किसान प्रति हेक्टेयर में 413 क्विंटल से अधिक हरा चारा उपज हासिल कर सकते हैं। जबकि, मक्का का दाना भी वह हासिल कर सकते हैं। मिली जानकारी अनुसार यह किस्म 95 दिनों में तैयार हो जाती है। देरी के बावजूद अधिकतम 105 दिन में यह पूरी तरह कटाई के लिए तैयार होती है। इसमें न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर (NDF) 62.5 फीसदी और इनविट्रो ड्राई मैटर डाइजेस्टिबिलिटी (IVDMD) 56.4 फीसदी होने के चलते यह पशुओं के लिए बेहद लाभकारी साबित होती है।
आमतौर पर मक्के की फसल में झुलसा रोग पौधे के विकास को तो रोकता ही है, बल्कि उसके पोषक तत्वों को भी मार देता है। यह किस्म चित्तीदार तना छेदक कीट को फसल में पनपने नहीं देता है। यह कीट भी पौधे के तने को नुकसान पहुंचाता है, जिससे उसका विकास रुक जाता है। इन दोनों की रोकथाम करने में सक्षम होने के चलते यह किस्म हरे चारे के लिए पर्याप्त पोषक तत्वों से लैस हो जाती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली के अनुसार पूसा फोरेज मक्का हाइब्रिड- (AFH-7) किस्म पर्याप्त सिंचाई सुविधाओं वाले इलाकों में बुवाई के लिए उत्तम है। इस किस्म को उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के तराई क्षेत्र में बुवाई के लिए सबसे उत्तम बताया गया है। इन इलाकों के किसानों से रबी सीजन में बुवाई के लिए सलाह दी गई है। इस किस्म को खरीफ सीजन में भी बोया जा सकता है।