दुनिया में लहसुन की पैदावार और निर्यात के मामले में चीन का अभी तक कोई मुकाबला नहीं है। भारत अब इस मोर्चे पर भी चीन को मात दे रहा है। भारत का लहुसन उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, जो चीन की परेशानी को बढ़ा रहा है।वहीं इस बीच चीन ने लहसुन की डंपिंग भी शुरु कर रखी है
फिलहाल इस बात में कोई शक नहीं है कि लहसुन निर्यात के मामले में चीन अभी भी आगे है। चीन कभी दुनिया का 80% लहसुन निर्यात करता था, जो हाल के सालों में अब 70-75 प्रतिशत तक आया है। वहीं इस बीच भारत का लहसुन का निर्यात बढ़ा है।
बीते साल के आंकड़ों को देखें तो भारत के मसाला एक्सपोर्ट में लहसुन की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है। भारतीय मसाला बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 2022-23 की अप्रैल से जनवरी यानी सिर्फ 10 महीनों में लहसुन के एक्सपोर्ट में 165% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
इस दौरान भारत ने 47,329 टन लहसुन का निर्यात किया जबकि पूरे वित्त वर्ष में ये निर्यात 57,346 टन रहा, जो 2021-22 के मुकाबले 159% अधिक था। अभी 2023-24 के आंकेड़े आने बाकी हैं। इसके उलट चीन के लहसुन उत्पादन में 25% तक की गिरावट दर्ज की गई है। भारत का लहसुन पश्चिमी एशियाई और अफ्रीकी देशों में तेजी से लोकप्रिय हुआ है।
भारत में करीब 32.7 लाख टन लहसुन का उत्पादन होता है। भारत में सबसे ज्यादा लहसुन का उतपादन मध्य प्रदेश में होता है। हालांकि चीन में उत्पादन गिरने के बावजूद वह दुनिया में नंबर-1 है। चीन में हर साल करीब 2 से 2.5 करोड़ टन लहसुन का उत्पादन होता है, हालांकि दोनों देशों में इसका अधिकतर उपयोग घरेलू स्तर पर ही हो जाता है।
चीन के मुकाबले भारत का लहसुन थोड़ा छोटे आकार का होता है। वहीं इसका रेट चीन के मुकाबले काफी कम है। चीनी लहसुन की ग्लोबल मार्केट में 1250 डॉलर प्रति टन कीमत है, तो वहीं भारतीय लहसुन 450 से 1000 डॉलर प्रति टन तक मिलता है। इसलिए भारत गरीब से लेकर अमीर देशों तक के हिसाब से लहसुन की क्वालिटी उपलब्ध करा पाता है। चीनी लहसुन की मांग अधिकतर अमेरिका और यूरोपीय देशों में है, जबकि भारत मलेशिया, थाईलैंड, नेपाल और वियतनाम को लहसुन का बड़े पैमाने पर निर्यात करता है।