भारत में नगालैंड सूबे में लोगों का औसत कद भले ही साढ़े पांच फिट है लेकिन यहां के एक मंत्री के सरकारी बंगले में धान की फसल नौ फुट की है। इसमें बालियां भी है। लोगों और मीडिया में धान के पौधों की ऊंचाई भी चर्चा में है।
अब कृषि विभाग के अधिकारी भी हैरान हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि टीम नमूना एकत्र करेगी और इसकी उत्पत्ति और अन्य पहलुओं के बारे में अध्ययन किया जाएगा। यह उल्लेख किया जा सकता है कि दुनिया में अब तक का सबसे ऊंचा धान का पौधा (ओरिज़ा सैटिवा) जिसकी लंबाई 2.8 मीटर (9 फीट 2 इंच) है, जिसे 2005 में खोजा गया था। यह महाराष्ट्र में कोल्हापुर में उगाया था।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि नागालैंड के ‘पैडी मैन’ के नाम से जाने जाने वाले मेलहिते केन्ये ने पहले 1998 में दुनिया का सबसे लंबा धान उगाने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का खिताब अपने नाम किया था। जिसकी लंबाई लगभग 2.5 मीटर थी। केन्ये को उनकी उपलब्धि के लिए 2002 में राज्यपाल का स्वर्ण पदक भी मिला। अब इसी नागालैंड ने एक बार फिर सबसे लंबा धान उगाने का रिकॉर्ड तोड़ दिया है।
भारत में 1960 से पहले लंबे तने वाले धान होते थे। इसलिए वह जल्दी नीचे गिर जाते थे और पैदावार कम हो जाती थी। इसलिए उनमें रासायनिक खादों का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता था। लेकिन जनसंख्या बढ़ने के साथ ही उत्पादन बढ़ाने की जरूरत पड़ी। ऐसे में बौनी किस्मों की आवश्यकता थी. भारत को ताइवान ने बौनी प्रजाति दी। उसके बाद हमने ‘आईआर-8’ नामक बौनी किस्म निकाली. फिर भारत ने चावल उत्पादन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
भारत की इस जरूरत को पूरा करने के लिए आगे आया. उसने अपने यहां उगने वाली बौनी धान की प्रजाति ताइचुंग नेटिव-1 दी। इसने भारतीय कृषि क्षेत्र की काया पलट दी. ताइचुंग नेटिव-1 ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ताइवान में विकसित टीएन-1 को दुनिया में चावल की पहली अर्ध-बौनी किस्म माना जाता है।
धान की दूसरी बौनी किस्म ‘आईआर-8’ आई. जिसे इरी ने भारत को 1968 में दिया. इसके जरिए तेजी से उत्पादन उत्पादन बढ़ने की शुरुआत हो गई। उसके बाद 1969 में ही हमारे वैज्ञानिकों ने इन प्रजातियों से क्रॉस ब्रिडिंग शुरू की। ओडिशा में चावल की एक किस्म थी टी-141, जिसका ताइचुंग नेटिव-1 से क्रॉस ब्रिडिंग करके जया नाम का धान तैयार किया गया। इसका तना 150 सेंटीमीटर से घटकर 90 का हो गया. इस कोशिश से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। इसके बाद भारत ने चावल के क्षेत्र में मुड़कर नहीं देखा। इससे पहले पचास के दशक में धान उत्पादन बढ़ाने की एक कोशिश जापान के साथ भी हुई थी।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक आजादी के बाद 1950-51 में प्रति हेक्टेयर सिर्फ 668 किलो चावल पैदा होता था, जो 1975-76 में 1235 किलो तक पहुंच गया. क्योंकि तब तक बौनी किस्मों का धान आ चुका था और खाद का इस्तेमाल बढ़ने लगा था। साल 2000-01 में उपज 1901 किलो प्रति हेक्टेयर थी और अब इसका आंकड़ा 2020-21 में 2713 किलोग्राम तक पहुंच गया है। यह सफलता सरकार की कोशिशों, कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत से तैयार की गईं अच्छी किस्मों और किसानों की बदौलत मिली है।