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उत्तराखंड के उच्च हिमालयी इलाकों में अब अखरोट की उपज को बढ़ावा

सूबे में धामी सरकार का इस बात पर जोर है कि कैसे वानिकी क्षेत्र का उपयोग करते हुए इसे वन पंचायतों और लोगों की आजीविका से जोड़ा जाए। इस संबंध में बीते दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन अधिकारियों की बैठक लेकर लंबी चर्चा की थी। इसी बैठक में वानिकी क्षेत्र के राजस्व प्रतिशत को बढ़ाने पर कई मुद्दों पर चर्चा की गई।

इसके साथ ही लीसा बिक्री के नियमों में भी बदलाव की तैयारी है। प्रदेश में लीसा बिक्री की ऑनलाइन व्यवस्था के तहत नीलामी की जाती है, स्थानीय लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिल पता है। इसके ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री के स्तर से स्थानीय स्तर पर लीस ब्रिकी संभावनाओं को तलाशने के निर्देश दिए गए हैं।

उत्तराखंड अखरोट उत्पादन में देश में जम्मू-कश्मीर के बाद दूसरे नंबर पर आता है। यहां अखरोट उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। बावजूद बीते कुछ सालों में राज्य में इसका उत्पादन घटा है। राज्य में प्रति वर्ष करीब 18 से 20 हजार मीट्रिक टन अखरोट का उत्पादन होता है। नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत, देहरादून, पौड़ी टिहरी, चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इसके उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। यही वजह है कि सरकार अब अखरोट उत्पादन को विशन मोड में शुरू करने जा रही है।

प्रदेश में वन संपदा को लोगों की आजीविका से जोड़ते हुए कई नए प्रयोग करने की तैयारी है। इसके तहत उच्च हिमालयी क्षेत्रों सहित मैदानी इलाकों के लिए अलग-अलग योजनाओं पर काम किया जा रहा है।

इसके तहत अखरोट, बांस बांज, सागोन, पापुलर जैसी प्रजातियों को बढ़ावा दिया जाएगा। उच्च हिमालय क्षेत्रों में उद्यान विभाग के साथ मिलकर अखरोट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वेलनट मिशन के तहत काम किया जाएगा। एक अनुमान के अनुसार, राज्य की आय में वानिकी क्षेत्र की हिस्सेदारी 2.5 से 3.5 प्रतिशत तक है, जबकि वानिकी क्षेत्र को राज्य की आर्थिकी का प्रमुख स्रोत चिह्नित किया गया है।

सूबे में यूकेलिप्टस प्रजाति के पुराने पेड़ों को काटने के लिए कार्ययोजना में शामिल करने के निर्देश शासन स्तर पर दिए गए हैं। इनके स्थान पर जरूरत के अनुसार नई प्रजाति के पौधे भी लगाए जा सकते हैं, जो नॉन टिबंर फॉरेस्ट प्रोडेक्ट की श्रेणी में आते हों।

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