उत्तर प्रदेश के सभी 75 जनपदों में मनरेगा योजना के तहत करोड़ों की संख्या में मजदूर पंजीकृत है। मनरेगा में काम मजदूरी के साथ-साथ अब लगातार काम ना मिलने की वजह से श्रमिक परिवारों का इस योजना से मोहभंग होता जा रहा है। लखनऊ विश्वविद्यालय के एक सर्वेक्षण में चूने गये चार जिलों में मजदूरों को तो यही नहीं पता कि मनरेगा योजना मजदूरों को कम की गारंटी देने वाली सरकारी योजना है।
हाल ही कई जिलों में काम न मिलने से मनरेगा मजदूरों ने दूसरे काम में खुद को खपा दिया है।
दरअसल कोरोना के वक्त केंद्र सरकार ने मनरेगा का बजट 70 हजार से एक लाख 11 हजार करोड़ तक बढ़ा दिया था। जानकारों का कहना है कि सरकार मनरेगा का बजट घटा रही है। साथ ही ऐप के जरिए फोटो अपलोड कराने के नियम से मजदूर परेशान हैं. बहुत सारे इलाके में फोटो अपलोड न होने से मजदूरी कट जाने का आरोप है। यही नहीं पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में नरेगा में भ्रष्टाचार के आरोप में केंद्र सरकार ने फंड ही नहीं दिया है। इसके चलते एक करोड़ से ज्यादा मजदूरों को सीधे तौर पर नुकसान हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में यह स्थिति बन गई है कि अभी मनरेगा के तहत शासन से फंड ही नहीं आ रहा है, जिससे भुगतान लंबित है।
बताया जाता है कि बालोद जिले में मजदूरी भुगतान 9 करोड़ लंबित है तो वहीं सामग्री का भुगतान 21 करोड़ तक लंबित है। मजदूरी भुगतान की यह समस्या लगभग डेढ़ माह से है। सामग्री भुगतान की समस्या विगत नवंबर से है। बिना पैसे दीपावली त्यौहार उन मजदूरों का फीका है जो मनरेगा के तहत काम करके आज मजदूरी के लिए तरस रहे हैं। वहीं सामग्री सप्लाई करने वाले भी आर्थिक दिक्कत झेल रहे हैं, जो लाखों रुपए तक का सामग्री उक्त योजना में लगा चुके हैं।
इलाहाबाद के गांवों से श्रमिकों का पलायन रोकने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम बना था। शुरुआत में तो इसके अच्छे परिणाम रहे। रोजी-रोटी के लिए शहरों के चक्कर लगाने वाले मजदूरों को गांव में ही काम मिलने लगा था, लेकिन अब स्थितियां इसके विपरीत हो गईं हैं। इसकी प्रमुख वजह समय से श्रमिकों को मजदूरी नहीं मिलना है। हाल यह है कि पिछले चार महीने से भुगतान नहीं हुआ। इसके कारण मजदूरों का योजना से मोहभंग हो रहा है।
जिले में मनरेगा के करीब 4.10 लाख जाब कार्डधारक हैं। इनमें से 1.68 लाख जाब कार्डधारक ही सक्रिय हैं। शेष ने मनरेगा से नाता ही तोड़ रखा है। इसका सबसे बड़ा कारण समय से मजदूरी का नहीं मिलना बताया जा रहा है। नियमों के अनुसार तो काम करने के 15 दिन के अंदर मजदूरी का भुगतान हो जाना चाहिए। रोजगार सेवक के मस्टर रोल बनाने से लेकर बीडीओ के एफटीओ जारी करने तक की प्रक्रिया पूरी करने के लिए ब्लॉक को आठ दिन मिलते हैं। इसके बाद एक सप्ताह के अंदर अन्य औपचारिकताएं पूरी करके धनराशि मजदूरों के खातों में भेजने की जिम्मेदारी बैंकों की होती है। जबकि जिले में पिछले चार महीने से मजदूरों को कोई भुगतान नहीं किया गया। जिले के श्रमिकों का 34 लाख और राजगीरों का 59 लाख रुपये बकाया है। भुगतान नहीं होने के कारण मनरेगा से मुंहमोड़ चुके श्रमिकों ने शहरों की तरफ रुख कर लिया है।Images credit – google