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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विकास की रफ्तार ने गन्ने की फसल के रकबे को ही घटा दिया !

गन्ना उत्पादन में उत्तर प्रदेश का अहम स्थान है। ख़ास तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को ज्यादा ईख की पैदावार के लिए चीनी का कटोरा कहा जाता है। मेरठ, बिजनौर मुरादाबाद हसनपुर और बुलन्दशहर, इलाकों में चीनी मिलों के अलावा गुड़ बनाने की इकाइयां भी बहुतायत में हैं। गुड़ व खांडसारी इकाइयां लघु उद्योगों की श्रेणी में आती है।

उत्तर प्रदेश में मेरठ से प्रयागराज तक के लिए एक्सप्रेस – वे बना रही है। आइंदा बनने वाले इस सरपट रास्ते की भूमि खरीदी और नक्शा बनकर तैयार है। इस रास्ते के लिए नदी किनारे की उपजाऊ जमीन को भी किसानों को ज्यादा मुआवजा देकर सरकार ने लिया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस सरपट मार्ग (एक्सप्रेस-वे) के बनाने से कई चीनी मिलों के गन्ना उत्पादन का रकबा कम हो रहा है। ज़ाहिर है कि इससे चीनी मिलों को भरपूर गन्ना न मिलने की समस्या पैदा हो जायेगी। एक तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित सूबे की प्रमुख चीनी मिलों की पेराई क्षमता बढ़ाने की कोशिश की जा रही है, दूसरी तरफ किसानों की उपजाऊ जमीन पर सरपट रास्ते बनाए जाने से ईख का रकबा कम होने से चीनी मिल मालिक गन्ना कम मिलने की स्थिति का आंकलन कर रहे हैं।

मेरठ परिक्षेत्र में मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा क्षेत्र आता है। इन सभी जिलों को मिलाकर वर्ष 2023-24 सत्र के गन्ना सर्वे में 3,85,163 हेक्टेयर में गन्ने की फसल हुई है जो कि पिछले सत्र 2022-23 के मुकाबले 1139 हेक्टेयर कम है। पिछले सत्र में 3,86,302 हेक्टेयर में गन्ने की फसल हुई थी। इममें पिछले सत्र में 2,02,019 पेड़ी, 1,84,283 पौधे थे। इस सत्र में पेड़ी घटकर 1,92,660 रह गई है और पौधा बढ़कर 1,92,503 हो गया है।

मेरठ परिक्षेत्र के 75 फीसदी किसान गन्ना उत्पादन प्रमुखता से करते हैं। इलाके में हापुड़ और बागपत में एक्सप्रेसवे के कार्य के चलते गन्ने के रकबे में अधिक कमी आई है। पिछले सत्र में हापुड़ में जहां पौधे और पेड़ी को मिलाकर 41,947 हेक्टेयर गन्ना हुआ था। इस वर्ष यह घटकर 38,346 रह गया है। बागपत में पिछले सत्र में पेड़ी और पौधा जहां 85,491 हेक्टेयर में था वह इस सत्र में घटकर 84,181 हेक्टेयर रह गया है।

गौरतलब है कि जहां परिक्षेत्र के अन्य भागों में गन्ना की बुवाई का रकबा कम हुआ है वहीं मेरठ इलाके में ईख का रकबा बढ़ा है।

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