समय पर बारिश न होने से हिमाचल प्रदेश सूखे की चपेट में आ गया है। अब तक प्रदेश की 550 पेयजल योजनाओं का जल स्तर गिर चुका है। इससे प्रदेश के कई इलाकों में पेयजल की किल्लत हो गई है। प्रदेश में कुल 9800 पेयजल योजनाएं हैं।
राजस्व एवं जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ने इसे लेकर सभी जिलों से रिपोर्ट मांगी है। एक मई को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर विभिन्न विभागों के साथ समीक्षा बैठक भी करेंगे। इसके बाद सरकार इस मामले को केंद्र सरकार से उठाकर राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग करेगी।
जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि कृषि-बागवानी क्षेत्र पर भी सूखे की भारी मार पड़ी है। सेब बहुल क्षेत्र में 7,000 फीट तक के ऊंचाई वाले बगीचों में इसका असर देखने को मिल रहा है। बारिश नहीं हुई तो 8,000 फीट तक की ऊंचाई वाले सेब बगीचों पर भी सूखे की मार पड़ सकती है। इससे फलों का आकार छोटा रह जाएगा।
सूखे से कृषि क्षेत्र भी 60 फीसदी तक प्रभावित हुआ है। गेहूं की फसल पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है। किसानों को उनकी मेहनत के मुताबिक फसल हासिल नहीं हुई। इस बार गेहूं का दाना पूरी तरह तैयार नहीं हो पाया।
प्रदेश में एक मार्च से 28 अप्रैल तक सामान्य से 93 फीसदी कम बारिश हुई। इस अवधि के दौरान 172.2 मिलीमीटर बारिश को सामान्य माना गया है, जबकि प्रदेश में इस वर्ष मात्र 12.4 मिलीमीटर बारिश ही हुई। बिलासपुर में सामान्य से 95, चंबा में 94, हमीरपुर में 92, किन्नौर में 91, कुल्लू में 84, कांगड़ा में 92, लाहौल-स्पीति में 94, मंडी में 83, शिमला में 94, सिरमौर में 99, सोलन में 95 और ऊना में 96 फीसदी कम बारिश हुई।
उधर, प्रदेश में एक से 28 अप्रैल तक सामान्य से 89 फीसदी कम बारिश हुई|