मोटे अनाज बोने के लिए आग्रह करने वाली पंजाब-सरकार की सुस्ती से सूबे के किसानों में नाराज़गी है। इस नाराज़गी की वजह मक्का की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नियमित खरीद न होना है। हालांकि,, सूबे में मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1090 से बढ़ाकर प्रति क्विंटल 2040 रुपये कर दिया है गया है। किसानों की नाराज़गी का मक्का की सरकारी खरीद न होने की वजह से अभी तक फसल का खेतों में तैयार होने के बावजूद कटायी न होना भी है इस वजह से किसान कोई दूसरी फसल नहीं हो सकें हैं।
पंजाब-सरकार ने मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो बढ़ा कर किसानों को ख़ुश तो कर दिया है लेकिन सरकारी खरीद नहीं हो रही हैं है। समर्थन मूल्य के खुले बाज़ार में किसानों को सिर्फ 1900 रुपये का रेट मिल रहा है।
पंजाब में मक्का की बसंतकालीन उपज को जून महीने तक काटकर बाजार में भेज दिया जाता है। किसान, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही अपनी मक्का(मकई) को सरकारी खरीद केन्द्रों पर ही बेचने को बेहतर समझते हैं। इस बार भरपूर फसल होने के बावजूद सरकारी खरीद न होने से मक्का-किसानों में नाराज़गी है।
पंजाब में msp पर मक्का की खरीद के मुद्दे पर भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल का कहना है हैं-“इस साल मक्का के किसान अच्छी फसल होने से खुश थे और सरकार की ओर से बढ़ाई गई एमएसपी की घोषणा के बाद मक्के की फसल का रकबा बढ़ गया था। जब फसल तैयार हो गई तो अब वे ठगे हुए महसूस कर रहे हैं। हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य के अनुसार मक्का की घोषित कीमत 2,090 रुपये थी, लेकिन किसानों को केवल 1,400-1,500 रुपये प्रति क्विंटल ही मिल रहे हैं।खराब मौसम में उगाई गई मक्का की बिक्री को लेकर किसानों में बहुत मायूसी है। किसान ख़ुद को सरकार के हाथों ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
किसानों को फसल की लागत भी निकालना मुश्किल है। मक्का किसान को लागत के रूप में 20,000 रुपये प्रति एकड़ खर्च करने के बावजूद अपनी उपज के लिए 1,500 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है। सरकार के प्रोत्साहन से किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल बेचने की उम्मीद में मक्का की बुआई की थी। अब वे ठगे से महसूस कर रहे हैं। किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। पहले पंजाब मक्का उत्पादन का गढ़ माना जाता था। साल 2022-23 में खरीफ के समय पंजाब में कुल 3.59 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फसलों की बुवाई की गई, इसमें से धान की बुवाई 3.13 मिलियन हेक्टेयर में हुई। खरीफ सीजन के दौरान मक्का 1973-74 तक पंजाब में सबसे महत्वपूर्ण फसल हुआ करती थी, जब इसकी खेती 5.67 लाख हेक्टेयर (हेक्टेयर) में की जाती थी। आजकल किसान मक्का की जगह धान की फ़सल को तरजीह देते हैं। इसकी वजह खुले बाज़ार और न्यूनतम समर्थन समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद होना है।
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