आममौर पर बासमती धान में पत्ती का जीवाणु झुलसा और झोका रोग लगता है। मजबूरी में किसान इससे निपटने के लिए ट्राइसाइक्लाजोल नामक कीटनाशक का स्प्रे करते हैं। जिसके कारण चावल में कीटनाशक की मात्रा मिलती थी और खासतौर पर यूरोपीय यूनियन के देशों से हमारा चावल वापस आ जाता था । ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा ने तीन ऐसी किस्में विकसित कीं जिनमें जीवाणु झुलसा और झोका रोग नहीं लगेगा।
इन तीनों को बासमती की पुरानी किस्मों को सुधार करके रोग रोधी बनाया है। इनमें प्रति एकड़ कीटनाशकों पर 3000 रुपये तक का होने वाला खर्च बचेगा और एक्सपोर्ट में अब कोई दिक्कत नहीं आएगी. जिससे किसानों की कमाई बढ़ेगी ।
भारत में लगभग 20 लाख हेक्टेयर में बासमती धान की खेती की जाती है. जिनमें पूसा बासमती 1509, 1121 और 1401 किस्मों का दबदबा रहा है. बासमती के कुल रकबा में इसका हिस्सा करीब 95 फीसदी है। अब इन्हीं को सुधारकर रोगरोधी बना दिया गया है।
पूसा बासमती 1886 – यह पूसा बासमती 6 (1401) का उन्नत रूप है। जो बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगरोधी है। यह 145 दिन में पकती है। औसत उपज 44.9 क्विंटल (4.49 टन) प्रति हेक्टेयर होती है।
पूसा बासमती 1847 – बासमती की यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगरोधी है। यह जल्दी पकने वाली और अर्ध-बौनी बासमती चावल किस्म है जिसकी औसत उपज 57 क्विंटल (5.7 टन) प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म 2021 में व्यावसायिक खेती के लिए जारी की गई थी।
पूसा बासमती 1885 – यह बासमती चावल की लोकप्रिय किस्म पूसा बासमती 1121 का उन्नत बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगरोधी किस्म है। इसका पौधा औसत कद का होता है और इसमें पूसा बासमती 1121 के समान अतिरिक्त लंबे पतले अनाज की गुणवत्ता है। मध्यम अवधि की किस्म है जो 135 दिन में पक जाती है। औसत उपज 46.8 क्विंटल (4.68) टन प्रति हेक्टेयर होती है।