तेलंगाना के रहने वाले दुशार्ला सत्यनारायण ने अकेले अपने दम पर कर दिखाया है। उन्होंने बिना किसी से कोई सहयोग लिए 70 एकड़ का एक जंगल खडा़ कर दिया है जिसमें आज सैंकड़ों किस्म के पेड़-पौधे उगे हुए हैं तथा अनगिनत पशु-पक्षियों का घर बना हुआ है।
सूबे के सूर्यपत जिले के राघवपुरम गांव में एक जमींदार परिवार में जन्मे दुशार्ला सत्यनारायण की। वह बचपन से ही प्रकृति के साथ रहने का सपना देखते थे। पढ़ाई-लिखाई के बाद उन्हें बैंक में फील्ड ऑफिसर की नौकरी मिली। मात्र 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने गांव आ गए। यहां आकर वह अपनी पुश्तैनी जमीन को प्रकृति का स्वर्ग बनाने में लग गए। हालांकि पेड़-पौधे उगाना उनकी बचपन से रूचि थी परन्तु जॉब छोड़ने के बाद वह फुल टाइन इसी काम को करने लगे।
इस जंगल में जैव- विविधता का भी ध्यान रखा गया है|
मेंढ़क, मछलियां, कछुएं तथा अन्य कई जानवर रहते हैं। आज इस जंगल में खरगोश, बंदर, मोर, गिलहरियां, सांप, जंगली सुअर, जंगली बिल्लियां, नेवले, कुत्ते तथा अन्य कई जंगली जानवर रहते हैं। वहीं दूसरी ओर दुर्शाला सत्यनारायण यहां एक झोपड़ी बना कर रहते हैं। उनकी मृत्यु के बाद इस जंगल की देखभाल कौन करेगा के सवाल पर वह कहते हैं, प्रकृति इसमें सक्षम है।
सत्यनारायण 67 वर्ष के करीब हैं | उन्होंने कड़ी मेहनत के दम पर पिछले चालीस वर्षों में अपनी 70 एकड़ खेती की जमीन को एक जंगल में बदल दिया है। इसे वह “360 दरवाजों और 660 खिड़कियों” वाला घर कहना पसंद करते हैं। सत्यनारायण कहते हैं कि इस जंगल के असली मालिक यहां के पेड़-पौधे तथा यहां रहने वाले जानवर हैं, वह तो केवल उनके सेवक हैं।
अपने इस जंगल को बनाने के लिए वह जितना अधिक संभव हो सका, अलग-अलग स्थानों से दुर्लभ किस्मों के पेड़-पौधों के बीज तथा कलम लाकर यहां पर रोंपी, उनका पालन-पोषण किया और आज इस स्थिति में ला दिया कि जो पेड़-पौधे आसपास अन्यत्र कहीं और नहीं मिलते, वे सब यहां पर देखे जा सकते हैं।
जामुन, बाबुल, बांस, वूमैन्स टंग ट्री, आमों की कई किस्मों सहित सैंकड़ों अन्य प्रकार के पेड़-पौधे उगे हुए हैं। इनके अलावा यहां पर कई प्रकार के औषधीय पौधे भी उन्होंने उगा रखे हैं। सबसे बड़ी बात, यहां उगने वाले फल-फूल वे किसी को नहीं बेचते वरन ये पेड़ से नीचे गिर कर मिट्टी में ही मिल जाते हैं और उसे उपजाऊ बनाने में अपना योगदान देते हैं।