देश में सोना मोती गेहूं किस्म की खेती प्राचीनकाल से ही की जा रही है। गेहूं में किसी भी अन्य अनाज के मुकाबले तीन गुना अधिक फोलिक एसिड होता है। यही नहीं लगभग 267 प्रतिशत अधिक खनिज और 40 प्रतिशत अधिक प्रोटीन पाया जाता है। फोलिक एसिड गर्भवती महिलाओं के लिए काफी लाभदायक है। साथ ही बालों को भी मजबूत बनता है।
गेहूं की इस किस्म में ग्लाइसेमिक सामग्री और फोलिक एसिड अधिक होता है। कुल मिलाकर गेहूं की यह प्राचीन किस्म अपने उच्च पोषण संबंधी गुणों के लिए जानी जाती है। जिसे लोग अब बेहद पसंद कर रहे हैं।
सोना मोती गेहूं की खेती कम उपजाऊ भूमि में भी आसानी से की जा सकती है। इस किस्म की खेती जैविक एवं प्राकृतिक पद्धति से करने पर भी दुसरे गेहूं के मुकाबले ज्यादा उत्पादन प्राप्त होता है।
इस गेहूं की औसत पैदावार प्रति एकड़ 12 से 15 क्विंटल प्रति एकड़ है। यहाँ किसान कर रहे हैं सोना मोती गेहूं किस्म की खेती सोना-मोती गेहूं की किस्म काफी पुरानी है जो विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गई थी, परंतु देश के कई राज्यों के किसानों के द्वारा इसकी खेती दोबारा से शुरू की गई है। वर्तमान समय में इसकी खेती पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखंड एवं मध्य प्रदेश राज्य के कई किसानों के द्वारा खेती की जा रही है।
पंजाब में दो हजार साल पुरानी गेहूं की किस्म सोना-मोती अपना बुआई का क्षेत्रफल बढा रही है। वैज्ञानिकों की राय में यह किस्म बेसहारा लोगों के लिए स्थापित आश्रय गृह में अब तक सुरक्षित रही है और अभी 800 एकड में इसकी बुआई की जा रही है।
कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की इस पुरातन देशी किस्म पर परीक्षण कर यह निष्कर्ष निकाला कि बगैर कीटनाशक और रासायनिक खाद के इसकी पैदावार की जा सकती है। इस गेहूं की पैदावार प्रति एकड 12 से 15 क्विंटल होती है जबकि अन्य किस्म का गेहूं प्रति एकड 15 से 20 क्विंटल होता है। इस किस्म में ग्लूटेन और ग्लाइसीमिक तत्व कम होने के कारण डायबिटीज पीडितों में इसकी मांग बहुत है।