चमोली जिले में जोशीमठ पिछली फरवरी से सुर्खियों में रहा। इलाके के घरों, सड़कों और खेतों में दरारें आने से लोग पक्के मकान और खेत छोड़कर चले गये। जोशीमठ भू-धंसाव के बाद वैज्ञानिक संस्थाएं अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंप चुकी हैं।
इन संस्थाओं की रिपोर्ट पर कई दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं। रिपोर्ट में जोशीमठ भू-धंसाव की स्थिति करीब-करीब स्पष्ट हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी की धामी-सरकार अब मानसून पर अटकी हुई है। मानसून की बारिश जोशीमठ पर क्या असर डालेगी, सरकार को भी इस बात का इंतजार है। इसके बाद ही जोशीमठ के संबंध में सरकार की ओर से कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा। मानसून को लेकर चमोली जिले में बेचैनी हैं।
भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ में अत्यधिक बारिश होने पर भू-धंसाव की गति और बढ़ सकती है। भू-धंसाव के कारण तमाम सेफ्टी टैंक भी लीकेज हुए होंगे, जिनका पानी भी रास्ता तलाशेगा। बारिश का पानी इसके साथ मिलकर नए स्रोतों को जन्म दे सकता है। इससे भू-कटाव बढ़ेगा। यही सरकार के लिए भी चिंता का बड़ा कारण है।
उत्तराखंड में मानसून जून से सितंबर के बीच अपने चरम पर होता है। मानसून के दौरान लगातार होने वाली बारिश जोशीमठ में दरारें बढ़ा सकती है। राज्य में औसत 1162.7 मिमी की बारिश होती है, जबकि चमोली में औसतन 1230.8 मिमी वार्षिक वर्षा होती है। पिछले साल के मानसून के दौरान जब राज्य में 1128.0 मिमी बारिश (जून-सितंबर) हुई थी। चमोली राज्य के दो जिलों में से एक था, जहां सबसे अधिक बारिश हुई थी। राज्य में 13 जिले हैं। चमोली में सबसे ज्यादा 1196.4 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।
जोशीमठ में भू-धंसाव के बाद विशेषज्ञों ने जोशीमठ में और भूगर्भीय अस्थिरता की आशंका व्यक्त की है, जहां अब तक 868 भवनों में दरारें आ गई हैं और 181 को असुरक्षित घोषित किया गया है। 502 प्रभावित परिवारों में करीब 437 को मुआवजा बांटा जा चुका है, जबकि 65 परिवार अभी भी प्रशासन की ओर से विभिन्न होटलों और धर्मशालाओं में ठहराए गए हैं।