मछली पालन के लिए बनवाये गये तालाब का पानी अत्याधिक हरा हो जाने पर रासायनिक उर्वरक एवं चूना का प्रयोग एक माह तक बंद कर देना चाहिए| इसके बाद भी यदि हरापन नियंत्रित नहीं हो तो दोपहर के समय 800 ग्राम कॉपर सल्फेट या 250 ग्राम एट्राजीन (50%) प्रति एकड़ की दर से 100 लीटर पानी में घोल कर तालाब में छिड़काव करना चाहिए। तालाब में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा कम होने पर औटूमैस या एडऑक्सी या ऑक्सी ग्रे या आप्टी ऑक्सीजन नाम की दवा छिड़काव 400 ग्राम/एकड़ की दर से करें। नर्सरी तालाब में अत्याधिक रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
मछली को संक्रमण से बचाने हेतु प्रति 15 दिन पर पीएच मान के अनुसार 10-15 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से चूना घोल कर छिड़काव करें एवं माह में एक बार प्रति एकड़ की दर से 400 ग्राम पोटाशियम परमेगनेट को पानी में घोलकर छिड़काव करें।
मछली को पारासाईटिक संक्रमण से बचाने हेतु फसल चक्र में दो बार (दो माह पर) 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से नमक को पानी में घोलकर छिड़काव करें। माह में एक सप्ताह प्रति किलोग्राम पूरक आहार में 10 ग्राम नमक मिलाकर मछलियों को खिलाएँ।
पंगेशियस मछली के पालन करने वाले किसानों को पूरक आहार प्रबंधन के क्रम में मछली के कुल औसत वजन के हिसाब से छः माह की पालन अवधि में क्रमशः 6%, 5%, 4%, 3%, 2%, 1.5% प्रथम माह से छठा माह तक पूरक आहार देना चाहिए। पालन अवधि में मछली के औसत वजन के हिसाब से प्रथम दो माह 32% प्रोटीन युक्त आहार अगले दो माह 28% प्रोटीन युक्त आहार पाँचवे माह में 25% प्रोटीन युक्त आहार एवं छठे माह में 20% प्रोटीनयुक्त आहार प्राथमिकता के आधार पर प्रयोग करें। मौसम का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम एवं 36 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा होने पर पूरक आहार का प्रयोग आधा कर देना चाहिए।
मछली की जल्द बढ़वार के लिए फ़ील्ड सप्लीमेंट के रूप में प्रति किलोग्राम पूरक आहार में 100 ग्राम सूक्ष्म खनिज तत्व, 2-5 ग्राम गट प्रोबायोटिक्स को वनस्पति तेल या बाजार में उपलब्ध कोई भी बाइंडर 30 एम.एल/किलोग्राम भोजन में मिलाकर प्रतिदिन खिलाना चाहिए।