पशुपालन का काम अच्छी तरह से हो और उससे होने वाला दुग्ध उत्पादन अच्छा हो तो किसानोंं को काफी अच्छी आय हो सकती है। पशुपालन के लिए पौष्टिक एवं संतुलित आहार का प्रबंधन करना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसमें हरे चारे का प्रबंधन करना सबसे अधिक महत्व का काम है। हरे चारे का प्रबंधन इसलिये सबसे अधिक महत्व का काम है
हमारे देश में अनेक स्थान शुष्क स्थान हैं| मौसम परिवर्तन के कारण सभी जगहों में एक ऐसा समय भी आ जाता है जब हरा चारा नहीं मिल पाता है। इस समस्या को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकोें ने शुष्क प्रदेशों और शुष्क मौसम में कम लागत में हरा चारा उगाने की खोज की है। इससे किसान भाई कम लागत में हरा चारा उगा कर दुग्ध उत्पादन बढ़ा सकते हैं, इससे उनकी कमाई बढ़ सकती है।
बरसीम सर्दियों में पशुओं के लिए सर्वोत्तम हरा चारा है। यह खेती के साथ-साथ पशुपालक एवं दुग्ध उत्पादन किसान की आमदनी बढ़ाने का मुख्य साधन है। दुधारू पशुओं के लिए बरसीम बहुत ही पौष्टिक व दुग्ध क्षमता बढ़ाने में सहायक है। बरसीम चारे में 20 प्रतिशत प्रोटीन, खनिज लवण तथा भरपूर मात्रा में विटामिन होते हैं।
पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य तथा पौष्टिक दुग्ध उत्पादन के लिए प्रत्येक किसान को हरे चारे के रूप में बरसीम अवश्य उगानी चाहिए। बरसीम से नवंबर से मई तक हरा चारा तो मिलता ही है, यह भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ाती है। विशेष बात यह है कि खारी भूमि भी बरसीम उगाने से ज़मीन सुधर जाती है।
हिसार बरसीम एक व दो तथा मैस्कावी प्रमुख उन्नत किस्में हैं। इनसे 300 से 350 क्विंटल प्रति एकड़ हरा चारा प्रति एकड़ मिल जाता है। अक्टूबर के अंत तक का समय बरसीम बिजाई के लिए सर्वोत्तम है तथा इस अवधि में बरसीम बोने से अधिकतम पैदावार मिलती है।
खेत में गोबर की खाद डाल दें तथा 175 किलो सिगल सुपर फास्फेट व 25 किलो यूरिया भी प्रति एकड़ डाल दें। यदि बरसीम के साथ जई भी मिलाई हो तो 30 किलो अतिरिक्त यूरिया भी बिजाई के समय दें। अगेती तथा हल्की भूमि में पहली सिचाई बिजाई के तीन से पांच दिन तथा भारी मिट्टी में आठ से 10 दिन बाद करते हैं। इसके बाद 15 से 20 दिन के अंतर पर सिचाई करें। अक्टूबर व मध्य मार्च के बाद सिचाई 10 से 15 दिन के अंतर पर करनी चाहिए।
बरसीम में तना गलन रोग लगता है। रोग प्रकोप की दशा में 0.1 फीसद वाविष्टिन घोल से भूमि को सिचित करें। किसान बरसीम चारे की फसल में ज्यादा जहरीले कीटनासको का प्रयोग कभी ना करें। दवा छिड़काव के कम से कम एक सप्ताह बाद उस खेत के चारे की कटाई करनी चाहिए। बिजाई के लगभग 60 दिन बाद बरसीम पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद की कटाई सर्दी में 40 दिनों के अंतर पर तथा वसंत में 30 दिन के अंतर पर करें। इस प्रकार चार से छह कटाइओ में लगभग 350 क्विंटल चारा प्रति एकड़ मिल जाता है।