बीकानेर में केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान में आठ हेक्टेयर में बेर की 115 अलग-अलग किस्मों पर कृषि वैज्ञानिकों की ओर से शोध कार्य किया जा रहा है। खास बात यह है कि इसकी कई किस्मों पर सफल शोध कार्य भी हो चुका है। यहां पर तैयार होने वाली अलग-अलग बेरों की किस्मों की मांग बीकानेर सहित प्रदेश में अन्य जगहों पर भी बनी रहती है।
जानकारों के अनुसार यह पूरा क्षेत्र वर्षा आधारित पानी से पनपा है। इसके अलावा खारे पानी से भी इसकी खेती होती है। शुष्क बागवानी संस्थान में शोध के बाद कई काश्तकारों को इसको लेकर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। यहां बड़ी संख्या में लगे इन बेर के पेड़ों को देखने भी लोग यहां आते रहते हैं।
करीब 8 हैक्टेयर में बेर की अलग-अलग किस्मों पर रिसर्च कार्य चल रहा है। इस क्षेत्र में दो हजार से अधिक पेड़ रिसर्च के लिए लगे हुए हैं। इस दौरान बेर की 115 किस्मों पर कृषि वैज्ञानिकों की ओर से शोध कार्य किए जा रहे हैं। संस्था से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार एक पेड़ में करीब 1 क्विंटल तक बेर लग रहे हैं। इनकी नीलामी भी की जाती है। बिक्री के लिए स्टाल भी लगा रखे हैं, जहां 40 से 50 रुपए प्रति किलो तक इसकी बिक्री होती है।
बेर की करीब 200 नामित किस्में हैं, जिनका नाम मुख्य रूप से नाम गुणवत्ता के अनुसार रखा गया है। इनमें गोला, मुन्डिया, ईलायची, थारभुवराज, गोमाकीर्ति, छुआरा, सानौर-5, थारसेविका, काठाफल, बनारसी पेबन्दी, बनारसी कडाका, सेब, रश्मि, उमरान, कैथली, थार मालती, नरमा, जेडजी-3 एजोगिया, किशमिश, सफेदा रोहतक, काजरी गोला, ककरोला गोला, अखरोटों सहित अन्य शामिल हैं।
रसीले बेर की एक अगेती किस्म है-गोला । इस किस्म के फल जनवरी के मध्य तक पक कर तैयार हो जाते हैं। यह आकार में गोल, गूदेदार, रसीले तथा 20-25 ग्राम वजन के होते हैं। फलों में घुलनशील ठोस 20 फीसदी एवं गूदा तथा गुठली का अनुपात 14 प्रतिशत होता है। वर्षा पर आधारित क्षेत्रों में गोला बेर के एक पौधे से 40-60 किलो तथा सिंचित क्षेत्रों में 100-150 किलो तक फल उपज प्राप्त होती है।