गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में चल रही अखिल भारतीय समन्वित मक्का अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत विवि के वैज्ञानिकों ने चारे के लिए मक्का की संकर प्रजाति डीएफएच-2 विकसित की है जिसका परीक्षण अखिल भारतीय चारा परियोजना के अंतर्गत देश के विभिन्न भोगोलिक परिस्थितियों में विभिन्न शोध संस्थानों में करने पर अन्य प्रजातियों की तुलना में प्रथम स्थान मिला है।
इस प्रजाति को विकसित करने वाले प्रजनक डॉ. एनके सिंह ने बताया कि इसका विकास मक्के की जंगली प्रजाति ‘जिया मेज पार्वीग्लूमिस’ के संकरण से किया है जो अभी तक देश में विकसित इस तरह की पहली प्रजाति है। इसके पौधे दो मीटर लंबे होते हैं और पौधों में दो से तीन कल्ले होते है।
इससे देश में औसतन 465 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरे चारे की उपज प्राप्त हुई है जबकि देश के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में अधिकतम 756 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज मिली। इस प्रजाति में सर्वाधिक आठ प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है और उत्पादन के लिए कम पानी की आवश्यकता पड़ती है।
निदेशक शोध डॉ. एएस नैन ने बताया कि विवि की मक्का परियोजना को पिछले वर्ष देश के सर्वश्रेष्ठ केंद्र का पुरस्कार मिला व मक्के की दो संकर प्रजातियां भी विमोचित हुई थीं। यह विवि के मक्का वैज्ञानिकों के कठिन मेहनत की बदौलत ही संभव हो सका है।
निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. एके शर्मा ने बताया कि अगले खरीफ मौसम में विवि के कृषि विज्ञान केंद्रों पर भी इस प्रजाति का प्रदर्शन किया जाएगा।