21 वीं सदी के लिए कृषि चुनौतियां और नीतियां’ शीर्षक के साथ जारी नाबार्ड की कृषि शोध रिपोर्ट को नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने लिखा है| इस शोध रिपोर्ट पर मिंट ने एक स्टोरी प्रकाशित की है| जिसमें शोध रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि कुछ साल पहले तक देश की कृषि रणनीति किसी भी कीमत पर ‘अधिक भोजन उगाने’ के एकल आदर्श वाक्य पर केंद्रित थी| इस रणनीति की वजह से देश में खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना| तो वहीं कुछ क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन भी आए| वहीं इस वजह से ग्रामीण मजदूरी और रोजगार में बढ़ोतरी हुई| लेकिन, इसने कई मोर्चों पर नई चुनौतियों को भी जन्म दिया है| उन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है|
’21 वीं सदी के लिए कृषि चुनौतियां और नीतियां’ शीर्षक के साथ जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशी के अंधाधुंध उपयोग, सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली जैसे प्रयोग से पानी कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है| ऐसे प्रयोगों से प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण और पारिस्थितिकी को नुकसान हुआ है|वायु, जल और भूमि की गुणवत्ता निर्धारित करने में कृषि काफी महत्वपूर्ण है|
शोध पत्र में कहा गया है किजल संसाधनों के आपको अधिक दोहन को रोकने के लिए, भारत को एक नीतिगत माहौल बनाना चाहिए जो विभिन्न कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन बंदोबस्ती के अनुरूप फसल पैटर्न और प्रथाओं की ओर ले जाए. इसमें कहा गया है कि सिंचाई के आधुनिक तरीकों के माध्यम से कृषि में पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार के बिना, पानी के उपयोग पर जोर और भविष्य में पानी की आवश्यकता को हल नहीं किया जा सकता है.