हिमाचल प्रदेश में भी अब सिंदूर के पौधे उगाकर यहां के किसान लाखों रुपये कमा सकेंगे। साउथ अमेरिका में होने वाले सिंदूर के बिक्सा ओरेलाना पौधे के कुछ बीज महाराष्ट्र से लाए गए थे, जिनका हमीरपुर जिले के हर्बल गार्डन नेरी में अंकुरण प्रक्रिया का ट्रायल किया गया, जो कि सफल रहा।
इस पौधे के लिए उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की जलवायु उपयुक्त पाई गई है। सिंदूर के पौधे का एक औषधीय महत्व है, जिसका वानस्पतिक नाम बिक्सा ओरेलाना है। कई लोग इसे सिंदूरी, कपिला नामों से भी जानते हैं। सुहागिन महिलाओं और पूजा-पाठ में सिंदूर का विशेष महत्व है।
विभिन्न सौंदर्य प्रसाधनों लिपस्टिक बनाने, बाल रंगने और नेल पॉलिश आदि में भी सिंदूर का इस्तेमाल होता है। आयुर्वेद विभाग के पूर्व में ओएसडी एवं तीन बार केंद्रीय परिषद के निर्वाचित सदस्य रहे डॉ. अशोक शर्मा महाराष्ट्र में विभागीय भ्रमण पर गए थे। वहां पर गोंदिया नामक स्थान पर उनके एक मित्र ने उन्हें सिंदूर के बीज दिए थे, जो उन्होंने हमीरपुर पहुंचने पर हर्बल गार्डन नेरी के तत्कालीन इंचार्ज उज्ज्वल शर्मा को अंकुरण प्रक्रिया के ट्रायल के लिए दिए। लंबे समय तक ट्रायल के बाद यह बीज अंकुरित हुए। अब हर्बल गार्डन में सिंदूर का मदर प्लांट तैयार हो चुका है|
इसे पौधे के रूप में स्थापित किया गया है। एक पौधे से कम से कम डेढ़ किलोग्राम सिंदूर निकलता है। बाजार में सिंदूर की कीमत 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम है। पौधे में सिंदूर बीज के गुच्छे लगते है, जिसे पीसकर सिंदूर बनाया जाता है। बरसात का मौसम पौधरोपण के लिए अनुकूल होता है। एक बीघा जमीन में लगभग 250 पौधे 10 फीट की दूरी पर लगाए जा सकते हैं।
औषधीय गुणों कि बात करें तो सिंदूर एंटीपायरेटिक, एंटीडायरल, एंटी डायबिटिक होने के अलावा इसका रस महत्वपूर्ण दवाइयां बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह खून की गति बढ़ाने के लिए और रक्त शोधन व हृदय की शक्ति बढ़ाने में रामबाण औषधि के रूप में काम करता है। इसमें पार्द एवं गंधक का कल्प होता है। हालांकि इसके कोई दुष्प्रभाव नहीं होते, लेकिन पित्त प्रकृति के व्यक्ति के लिए इसका सेवन लाभप्रद नहीं है, क्योंकि यह एक ऊष्ण वीर्य रसायन है।