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गहरी जड़ों वाली वेटिवर घास(खस-खस) से रुकेगा भूस्खलन, सोलन में लगेगी नर्सरी

गहरी जड़ों वाली वेटिवर घास(खस-खस) से रुकेगा भूस्खलन, सोलन में लगेगी नर्सरी

मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि वेटिवर घास की 3 से 4 मीटर गहरी और घनी जड़ें मिट्टी को मजबूती से बांध कर रखती हैं जिससे भूस्खलन को रोका जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने सोलन जिले के बेरटी में अपने स्तर पर भी वेटिवर घास की नर्सरी स्थापित की है, इस घास की मदद से कम लागत और रख रखाव में भूस्खलन रोकने में मदद मिलेगी।

हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की घटनाएं रोकने के लिए तीन से चार मीटर गहरी जड़ों वाली वेटिवर घास की मदद ली जाएगी। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने वेटिवर फाउंडेशन तमिलनाडु के सहयोग से परियोजना विकसित की है। वेटिवर घास की 3 से 4 मीटर गहरी और घनी जड़ें मिट्टी को मजबूती से बांध कर रखती हैं जिससे भूस्खलन को रोका जा सकता है।

सुक्खू ने कहा कि प्रदेश में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए सरकार बायो-इंजीनियरिंग की मदद लेगी। वेटिवर घास की खेती के लिए प्रदेश में एक पायलट परियोजना शुरू की गई है। मानसून सीजन से पहले केमिकल रिसर्च सोसाइटी ऑफ इंडिया प्रदेश को वेटिवर घास की नर्सरी उपलब्ध करवाएगी। सरकार ने सोलन जिले के बेरटी में अपने स्तर पर भी वेटिवर घास की नर्सरी स्थापित की है, इस घास की मदद से कम लागत और रख रखाव में भूस्खलन रोकने में मदद मिलेगी।

कहा कि घास का प्रयोग पूरे विश्व में भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील स्थानों, राजमार्ग तटबंधों और नदी के किनारों पर किया जा रहा है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने वेटिवर फाउंडेशन सीआरएसआई तमिलनाडु के सहयोग से भूस्खलन से निपटने के लिए परियोजना शुरू की है। योजना में प्राधिकरण ने सीआरएसआई से वेटिवर नर्सरी उपलब्ध करवाने का आग्रह किया है ताकि 2025 के मानसून सीजन से पहले पर्याप्त मात्रा में पौधे उपलब्ध हो सके। सीआरएसआई ने 1,000 वेटिवर घास के पौधे निःशुल्क उपलब्ध करवाए हैं और इन पौधों को कृषि विभाग के सहयोग से सोलन जिले के बेरटी में स्थापित नर्सरी में लगाया गया है।

यह घास एक प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करते हुए पानी के बहाव को धीमा कर देती है और विशेषकर खड़ी ढलानों पर भूमि कटाव को रोकती है। पंक्तियों में लगाए जाने पर वेटिवर घास एक दीवार की तरह काम करती है। इसकी जड़ें अतिरिक्त पानी को सोख लेती हैं और मिट्टी में पानी की मात्रा को कम करती है। इससे भूस्खलन की संभावनाएं कम हो जाती हैं।

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