राजस्थान में सवाईमाधोपुर एकमात्र जिला है, जहां अमरूदों की बागवानी सर्वाधिक होती है। जिले में सर्वाधिक 75 प्रतिशत अमरूदों की बागवानी होती है। जिले के किसान परंपरागत फसलें न उगाकर अमरूद के बाग लगा रहे है|
जिले में पिछले एक दशक से बागवानी की तस्वीर बदलने लगी है। क्षेत्र के काश्तकार परंपरागत खेती से हटकर अब अमरूदों की बागवानी कर रहे है। स्थिति ये है कि जिले में 10 साल पहले 3 हजार हैक्टेयर में अमरूदों के बगीचे लगे थे, जो अब पांच गुणा बढ़कर 15 हजार हैक्टयर में पहुंच गए है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अच्छी आमदनी व मुनाफा होने से अब किसान अमरूदों की बागवानी लगाने में ज्यादा रूचि दिखा रहे है।
सवाई माधोपुर के आसपास 15 किलोमीटर के क्षेत्र में बर्फखाना, सफेदा लखनवी और गोला किस्म के सभी अमरूदों की फसल मौजूद है। यहां के लोगों का कहना है कि पैदावार को देखते हुए 2008 में अमरूद मण्डी स्थापित हुई थी, तब से ये फल किसानों के जीवकोपार्जन का साधन बन गए हैं। यदि 15 रुपए किलो का भी हिसाब लगाएं तो 20 अरब तक का व्यापार होता है। यहां अमरूदों कि फसल इतनी अच्छी है कि यहां को और किसी चीज़ की खेती करने कि जरुरत ही नहीं होती है। यहां के लोग आराम से अमरूदों से ही खाते—कमाते हैं।
जिले में करीब 70 से अधिक अमरूदों की नर्सरियां संचालित है। इनमें इस वर्ष 12 लाख से अधिक अमरूदों की पौध तैयार हो रही है। एक नर्सरी में तीन से पांच लाख तक की लागत होती है। एक नर्सरी में दस से 15 हजार अमरूद के पौधे तैयार हो रहे है। इनमें विनीयर ग्राफ्टिंग से अमरूद के पौधे तैयार किए जा रहे हैं।
जिले में सूरवाल, करमोदा, दौंदरी, मथुरापुर, आटूनकलां, गुढ़ासी, शेरपुर-खिलचीपुरए श्यामपुरा, ओलवाड़ा, पढ़ाना, मैनपुरा, अजनोटी, भाड़ौती, सेलू, रावल, गंगापुरसिटी, बामनवास आदि स्थानों पर 15 हजार हैक्टेयर में किसानों ने अमरूद के बगीचे लगा रखे है। जिला मुख्यालय के आसपास के क्षेत्र रामसिंहपुरा, करमोदा, सूरवाल सहित कई गांव अमरूद की अच्छी पौध के लिए जाने जाते है। यहां बर्फखान गोला, लखनऊ 49, इलाहाबादी, सफेदा किस्म के अमरूदों की पौध तैयार की जाती है।