न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित होने के बावजूद किसानों ने अपनी उपज सरकारी खरीद केन्द्रों पर न बेचकर खुले बाजार में पहुंचायी | सरकारी-खरीद केन्द्रों पर सन्नाटा ही छाया रहा| सरकार ने 30 जून तक अंतिम तिथि बढा दी | किसानों के दरवाजे पर पहुँचकर खरीद करने की बात से भी बात नहीं बनी|
अकेले यूपी में सरकारी खरीद बंद होने के बाद महज 2.98 लाख टन गेंहू की खरीद हुई है, जबकि पिछले साल 56.21 लाख टन गेंहू खरीदा गया था|
गोरखपुर मंडल सर्वाधिक किसानों तक पहुंचने में भी कामयाब रहा। यहां 14 हजार 204 किसानों से खरीद हुई जबकि मिर्जापुर में 11 हजार 550 किसान क्रय केंद्रों तक पहुंचे। लक्ष्य के सापेक्ष खरीद की बात करें तो गोरखपुर मंडल 14.21 प्रतिशत के साथ चौथे स्थान पर है। 25.48 प्रतिशत के साथ मिर्जापुर पहले, 19.22 प्रतिशत के साथ आजमगढ़ दूसरे एवं 15.74 प्रतिशत के साथ वाराणसी तीसरे स्थान पर रहा।
बीते 10 साल में गेहूं की सरकारी खरीद में इस साल रिकॉर्ड कमी दर्ज की गई है| इसी साल 31 मई तक सरकारी खरीद बढ़ाने के बावजूद सरकार महज 187 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई है, जबकि खरीद का लक्ष्य 400 लाख टन से ज्यादा था, यानि 50 फीसदी से ज्यादा की कमी देखी जा रही है| गेहूं की कम सरकारी खरीद का असर क्या गरीबों के राशन और आटे के भाव पर पड़ेगा|
गरीब परिवारों को अब गेहूं की जगह चावल दिया जा रहा है| हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में चावल लोग कम खाते हैं, लेकिन अब इसी से काम चलाना पड़ेगा| देशभर के 81 करोड़ गरीबों में बंटने वाले गेहूं को कम किया जा रहा है. केंद्र सरकार ने 11 राज्यों के गेहूं आवंटन में कमी करके करीब 116 लाख टन गेहूं का स्टॉक बचा लिया है, ताकि बाजार में आटे का भाव स्थिर रखा जा सके|