इस साल राज्य सरकार को सेब की पैदावार वाले इलाकों से मिली रिपोर्ट में चार करोड़ पेटी सेब पैदा होने का अनुमान है। बागवानों को इस बार छोटे आकार का सेब ज्यादा मिलेगा। हिमाचल में पिछले साल पौने तीन करोड़ पेटी सेब की पैदावार हुई थी। गुणवत्ता वाले सेब का उत्पादन कम होने से बागवानों को आर्थिक लाभ भी कम मिलेगा।
हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक इलाकों में सेब की अच्छी सेटिंग हुई है और पड़ों में सेब अधिक मात्रा में लगे हैं। ऐसी स्थिति में फलों का आकार नहीं बढ़ पाएगा और ए ग्रेड का सेब काफी कम पैदा होगा। बताते हैं कि सेब अधिक लगने से पेड़ में अच्छे ग्रेड का सेब कम पैदा होगा। छोटे आकर का सेब ज्यादा होने से मंडियों में बागवानों को सेब के कम रेट मिलेंगे। इस बार बागवानों को बाजार में सेब के कम रेट होने से आर्थिक नुकसान होगा।
राज्य के बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ने कहा कि राज्य में चालू सीजन में सेब की पैदावार ज्यादा होने के कारण बागवानों को इस साल सीजन में सेब की गुणवत्ता और आकार कम रहेगा। ए ग्रेड का सेब कम पैदा होने से बागवानों को छोटे सेब का रेट बाजार में कम मिलेगा।
देश में सेब की पैदावार में 36 फीसदी तक की बढ़ोतरी का अनुमान है। ऐसे में लगातार दूसरे साल विदेश के सेब पर निर्भरता कम रहने यानी इंपोर्ट घटने की संभावना है। हालांकि, हिमाचल के कुछ जनपदों में सेब की फसल को नुकसान पहुंचा है, जिस कारण वहां सेब के आकार पर असर पड़ा है।
नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड के आकलन के अनुसार इस साल देश में सेब का उत्पादन28 लाख टन से अधिक रहने की उम्मीद है। इसका कारण कश्मीर और हिमाचल के कुछ जिलों में उम्मीद से अच्छा मौसम रहना माना जा रहा है|
भारत में तीन राज्यों में सेब का उत्पादन होता है। इसमें कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड है। नॉर्थ ईस्ट के भी कुछ राज्यों में सेब होता है, लेकिन वो बहुत कम है। कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में भी सबसे ज्यादा सेब जम्मू कश्मीर में होता है। भारत का कुल 24 लाख टन सेब उत्पादन का साठ फीसद कश्मीर में होता है। उसके बाद हिमाचल का नंबर आता है। जहां हर साल ढाई करोड़ पेटी सेब देश और विदेश की मंडियों में जाता रहा है। उसके बाद उत्तराखंड हैं।
पिछले साल तक जहां उत्तराखण्ड में लगभग साठ हजार मीट्रिक टन सेब हुआ था। वहीं इस बार उत्पादन अस्सी हजार से ज्यादा है।