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छत्तीसगढ़ : महुआ की खुश्बू से आदिवासी की रोजी- रोटी ही नहीं निर्यात भी

महुआ को आदिवासी एकत्रित करते हैं और इन्हें सुखाकर शराब और खाने के कई रूपों में प्रयोग किया जाता है। अभी अप्रैल का महीना चल रहा है। वनवासी अभी महुआ के संग्रहण में जुटे हैं। ज्यादातर आदिवासी परिवार इस पुश्तैनी कार्य में लगे हैं। वनवासी महुआ को बाजार में सीधे बेच देते हैं, लेकिन जब दाम घट जाते हैं तो महुआ का आचार या शराब बनाकर इन्हें बेचा जाता है। आदिवासियों परिवार के घर अगर महुआ का पेड़ है और अगर बंटवारा की नौबत आती है तो स्वामित्व तय होता है। महुआ पेड़ पर स्वामित्व को लेकर हिंसा तक की नौबत आ जाती है। राज्य सरकार द्वारा साल 2022 में 2000 क्विंटल फूड ग्रेड महुआ फूल संग्रहण का लक्ष्य रखा गया है। पहले चरण में 1150 कुन्टल महुआ फूल 116 रुपये प्रति किलोग्राम दर पर बेचा भी गया है।

महुआ फूल को खाद्य योग्य बनाने राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा प्रक्रिया विकसित की गई है। महुआ वृक्ष के चारों ओर संग्रहण नेट बांधकर महुआ फूल संग्रहण किया जा रहा है। महुआ फूल को 10 रुपये (सूखा फूल 50 रुपये प्रति किलोग्राम) प्रति किलोग्राम की दर से राज्य लघु वनोपज संघ खरीद भी रहा है। साफ-सुथरे ताजा महुआ फूल को वनधन केंद्र के सोलाट टनल में सुखाया जाएगा। इस प्रक्रिया से बिना मिट्टी, धूल रहित खाद्य योग्य महुआ फूल का संग्रहण होगा। वर्तमान में यहां महुआ फूल का उपयोग देशी शराब बनाने में वनवासी करते हैं।

सीएफटीआरआई मैसूर के सहयोग से महुआ एनर्जी बार, महुआ गुड़ बनाने के तकनीक विकसित की गई है। दुर्ग जिले के पाटन में इससे संबंधित उद्योग भी शुरू की जा रही है।

पिछले साल अगस्त में ही पहली बार कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की अनुमति से छत्तीसगढ़ से महुआ फूल का निर्यात फ्रांस तक किया गया था| यह महुआ फूल कोरबा, कटघोरा, पसान, पाली और छूरी से संग्रहित किया गया था|

ट्राइबल को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने भी आईआईटी-दिल्ली के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे| समझौते के अनुसार बस्तर से प्राप्त महुआ के फूल से प्राप्त फ्लेवर युक्त महुआ ड्रिंक के उत्पादन की योजना थी. इसके तहत ‘महुआ’ नामक ब्रांड भी तैयार किया गया| लेकिन इसकी चर्चा कम हुई| ब्रिटेन के एक संस्थान ने छत्तीसगढ़ से 750 क्विंटल महुआ का आयात किया है|

महुआ का पेड वात, गैस, पित्त और कफ को शान्त करता है और रक्त को बढाता है| घाव को जल्दी भरता है . यह पेट के विकारों को भी दूर करता है|

यह खून में खराबी, सांस के रोग, टी.बी., कमजोरी, खांसी, अनियमित मासिक धर्म, भोजन का अपचन स्तनो मे दूध की कमी तथा लो-ब्लड प्रेशर आदि रोगो को दूर करता है| महुआ में कैल्शियम, आयरन, पोटॅश, एन्जाइम्स, एसिडस आदि काफी मात्रा में होता है|

फ्रांस को निर्यात किए जाने वाले महुआ के फूल ज्यादातर छत्तीसगढ़ के कोरबा, काठघोरा, सरगुजा, पासन, पाली, चुर्री के जंगलों से अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा एकत्र किए गए थे| निर्जलित महुआ के फूलों का उपयोग शराब, दवा और सिरप बनाने के लिए किया जाता है|

इसके फूलो के अंदर अत्यंत मीठा-गाढ़ा, चिपचिपा रस भरपूर होता है| मिठास के कारण मधुमक्खियाँ इसे घेरे रहती हैं| फूलो के अंदर जीरे जैसे कई बीज होते है जो अनुपयोगी है|

इसका पेड़ उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात तथा महाराष्ट्र में अपने आप ही उग जाता है तथा कुछ लोग इसकी खेती भी करते है|

जहां महुआ के पेड़ बहुतायत में हैं, वहाँ फूल पर्याप्त मात्र में मिलते हैं| गरीब तथा आदिवासी लोग इनको इकट्ठा कर लेते हैं| सुखाकर भोजन तथा अन्य में कई रूपों में इसका इस्तेमाल करते हैं| स्थानीय व्यापारी इन लोगों से सूखे फूल तथा बीज बड़े सस्ते में खरीद लेते हैं|

यह मूल रूप से भारत का वृक्ष है और शुष्क क्षेत्रो के लिए अनुकूल है. यह प्रजाति संपूर्ण भारत, श्रीलंका और संभवत: म्यमार (पहले वर्मा) में पाई जाती है| भारत में यह गर्म भागों उष्णकटिबंधीय हिमालय और पश्चिमी घाट में पाया जाता है|

महुआ भारतीय वनों का सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष है जिसका कारण ना केवल इससे प्राप्त बहुमूल्य लकड़ी है वल्कि इससे प्राप्त स्वादिष्ट और पोषक फूल भी है. यह अधिक वृध्दि करने वाला वृक्ष है|

इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके फूलों को संग्रहीत करके लगभग अनिश्चित काल के लिए रखा जा सकता है|

इस वृक्ष में फूल 10 वर्ष की आयु से शुरू होते है और लगभग 100 वर्ष तक लगातार आते रहते है| फूल घने, अधिक मात्रा में आकार में, छोटे और पीले सफेद रंग के होते है| फूलों से कस्तूरी जैसी सुगंध आती है. फूल मार्च – अप्रैल माह में आते है|

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