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नई खेती की सोच ने बदली तुकाराम की ज़िन्दगी

पारंपरिक फसलें जैसे प्याज, गेहूं, गन्ना और अन्य मौसमी सब्जियां उगाने वाले महाराष्ट्र के संगमनेर तालुका के निमाज के किसान है- तुकाराम गुंजाल| अपने चचेरे भाइयों के साथ अपनी 12 एकड़ की कृषि भूमि पर मेहनत करते हुए दिन बिता रहे थे| मगर इस खेती से होने वाली आय से उनके जीवन में कोई प्रगति नहीं थी| मगर अब 57 वर्षीय तुकाराम खेती से लाखों रुपये की सालाना कमाई कर रहे हैं|

पारंपरिक खेती के बारे में तुकाराम कहते हैं, “हमारी आय का लगभग 70 फीसदी मजदूरों को मजदूरी पर खर्च हो जाता था| हमारा खर्च कमाई से ज्यादा था| इसलिए, मजदूरों पर निर्भरता कम करने के लिए फसल में बदलाव की जरूरत थी|” तुकाराम का कहना है कि वह अपनी स्थिति से निराश थे और उन्होंने विभिन्न फसलों के साथ प्रयोग करने का फैसला किया|

उन्होंने 2 एकड़ जमीन पर खेती शुरू की और बारी-बारी से टमाटर, गेंदा और तुरई उगाना शुरू किया| बदलते फसल पैटर्न के साथ, उन्होंने मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई के तरीकों को अपनाया, जिससे रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल कम हुआ| आज, वह अपनी 12 एकड़ जमीन से 35 लाख रुपये कमाते हैं|

अपनी तकनीक के बारे में बताते हुए तुकाराम कहते हैं, ”मैं मई में खेत जोतता हूं और गाय के गोबर और मुर्गीघर के कचरे से जमीन तैयार करता हूं| एक बार भूमि तैयार हो जाने के बाद, जून के पहले सप्ताह से लगभग 8,000 गेंदे के पौधे उगाए जाते हैं| इन्हें सितंबर में काटा जाता है और अगली फसल यानी टमाटर को अक्टूबर की शुरुआत में रोपा जाता है| एक बार जब टमाटर की फसल 75% तक पहुंच जाती है, तो तुरई की बुवाई शुरू हो जाती है|”

तुकाराम का कहना है कि यह पैटर्न सुनिश्चित करती है कि फसलें बाजार की मांग के अनुरूप हों| हर फसल की कटाई का समय डेढ व दो महीने का होता है| यदि पहले फसल चक्र में दरें अच्छी नहीं हैं, तो वे दूसरे फसल चक्र में सुधार करती हैं| बाजार में कृषि उपज की योजना बनाई जाती है और अन्य क्षेत्रों से आपूर्ति कम होने पर बाहर भेज दी जाती हैं|

वह कहते हैं, ‘संगमनेर, सूरत, पुणे और मुंबई में टमाटर की काफी मांग है| भावनगर और सूरत में गेंदे के फूलों की ऊंची कीमत मिलती है. लौकी का सूरत और पुणे के बाहरी इलाके में एक बाजार है|’

तुकाराम का कहना है कि मल्चिंग और ड्रिप सिचाई के अलावा उन्होंने एक करोड़ लीटर की जल भंडारण क्षमता वाला एक फार्म तालाब और दो कुएं भी स्थापित किए हैं| इससे यह सुनिश्चित होता है कि पानी की आपूर्ति पर्याप्त और निर्बाध है| यह पानी के उपयोग, संसाधनों की बचत करता है|

इसके अलावा, उन्होंने कीट नियंत्रण के लिए सोलर ट्रैप लाइटें लगाई हैं| वो कहते हैं कि सभी कीट फसलों के लिए खराब नहीं होते हैं| सोलर ट्रैप लाइटें रात में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों और कीड़ों को आकर्षित करती हैं| सुबह करीब पांच बजे लाइट बंद हो जाती है| सुबह में खेतों में आने वाले कीटों की किस्में अलग-अलग होती हैं और ये परागण में सहायता करते हैं, जिससे उत्पादन बढ़ता है|

तुकाराम का कहना है कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और अन्य राज्यों के किसान उनके खेत में आते हैं|

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