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मणिपुर में चुनावी मुद्दा बना पर्यावरण

मणिपुर जैसे छोटे-से पर्वतीय राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी से लेकर कांग्रेस और बाकी तमाम क्षेत्रीय दलों तक ने न सिर्फ पर्यावरण के मुद्दे को अपने घोषणापत्र में जगह दी है और चुनाव अभियान के दौरान भी जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाते रहे हैं| राज्य के 60 विधानसभा सीटों में दोनो दौर में मतदान हो चुका है | अब 10 मार्च को वोटों की गिनती होनी है|

पूर्वोत्तर भारत में मीठे पानी की सबसे बड़ी लोकटक लेक में दुनिया का अकेला तैरता हुआ केबुल लामजाओ नेशनल पार्क और लुप्तप्राय संगाई हिरण भी रहते हैं. संगाई हिरण मणिपुर का राजकीय पशु है| अपने किस्म के इस अनूठे लेक में जगह-जगह द्वीप और घर बने हुए हैं| हजारों लोग मछली पालन के जरिए पीढ़ियों से अपनी आजीविका चलाते रहे हैं|

मणिपुर में सत्ता के दावेदार तमाम राजनीतिक दलों ने लोकटक लेक के विकास, वहां ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने, पर्यावरण की सुरक्षा और मत्स्य पालन को बढ़ावा देने को अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से जगह दी है| केंद्र सरकार भी इनलैंड वॉटरवेज प्रोजेक्ट के लिए लोकटक लेक पर ध्यान दे रही है|

सत्तारूढ़ बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में राज्य की लुप्तप्राय प्रजातियों, वनस्पतियों और जीवों की रक्षा के लिए एक ठोस कार्य- योजना बनाने का भरोसा दिया है| पार्टी ने लोकटक लेक को संरक्षण और विकास के जरिए इसे पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे बेहतर बनाने की भी बात कही है| उसने इस झील और इससे जुड़े जलाशयों के बेहतर प्रबंधन के लिए लोकटक विकास प्राधिकरण के पुनर्गठन का भी वादा किया है| डीडब्ल्यू में छपी प्रभाकर मणि तिवारी की एक रिपोर्ट के अनुसार : लोकटक लेक से आजीविका चलाने वाले मछुआरे राजनीतिक दलों को वादों से खुश नहीं हैं| उन्हें डर है कि विकास परियोजनाओं को लागू करने की स्थिति में जहां उनके सामने विस्थापन का खतरा पैदा हो जाएगा वहीं पारंपरिक मत्स्य पालन उद्योग की भी कमर टूट जाएगी|

मछुआरों के संगठन थिनुनगाई फिशरमेन यूनियन के संयोजक वाई रूपचंद्रा कहते हैं, “ईको-टूरिज्म को विकसित करने की योजनाएं मछली पालन पर निर्भर लोगों की आजीविका छीन सकती है|”

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