कम समय में तैयार होने वाली अरहर की प्रजाति पूसा-16 की खेती बारिश के मौसम में भी की जाती है। पूसा-16 अरहर की 120 दिनों में तैयार होने वाली प्रजाति है। समय से बोआई कर इसके बाद आलू, गेहूं, सरसों आदि रबी फसलों की खेती की जा सकती है। यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली से विकसित की गई है। यह प्रजाति अतिशीघ्र पकने वाली श्रेणी में आती है।
इसकी औसत पैदावार लगभग 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यदि वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाए तो लागत कम लगेगी और उत्पादन भी अच्छा मिलेगा। कटने के बाद रबी की सरसों, गेहूं, जौ, आलू की फसल लेने से किसान की आमदनी बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में किसानों को सलाह दी गई कि खरीफ की खेती में दलहनी फसलों में अरहर की पूसा-16 किस्म को भी स्थान दें।
आईसीएआर-आईएआरआई, नई दिल्ली ने और अधिक जल्दी पकने वाली (120 दिन), कम ऊंचाई वाली (95 सेमी से 120 सेमी तक लंबी) परिमित, अधिक उपज देने वाली नई पादप प्रकार की आनुवंशिक सामग्री अर्थात पूसा अरहर-16 विकसित की है, जो अर्द्ध रूप से सीधा खड़ा होने वाला मजबूत किस्म का पौधा है। अगर इसकी बुआई 30 सेमी की दूरी रखकर और एक पौधे से दूसरे पौधे के मध्य 10 सेमी का अंतर रख कर की जाए तो एक हेक्टेयर भूमि में इस किस्म की अरहर के 3,30,000 पौधों की सघन आबादी हो सकती है।
फसल की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए अधिक घनत्व वाली रोपाई और मशीनीकरण बहुत महत्वपूर्ण है। अरहर की पारंपरिक किस्मों में उच्च घनत्व की रोपाई संभव नहीं होती क्योंकि उनके पौधे अपरिमित प्रकार के होते हैं और बहुत फैलाव करने वाले होते हैं। इस प्रकार अधिक जनसंख्या घनत्व की उपयुक्तता से पौधों का एक समान घनत्व हो जाता है और जिसके कारण एक समान ही पौधे खड़े होते हैं। इसलिए अंकुर नष्ट होने के कारण होने वाली हानियां कम होती हैं। पूसा अरहर 16 के रूप में आईसीएआर-आईएआरआई ने गेहूं और चावल के कम ऊंचाई वाले पौधों की तरह ही अरहर की यह नई किस्म विकसित की है।
पूसा अरहर-16 की बुवाई के लिये लाइनों के बीच 30 सेमी. की दूरी और पौधों के बीच में 10 सेमी. की दूरी रखकर बुवाई करनी चाहिये। मेड़ों पर अरहर की बुवाई करने पर अधिक जल भराव और फफूंदी रोगों की रोकथाम में मदद मिलती है। बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम तथा ग्राम कार्बेण्डाजिम से प्रति किलो अरहर के बीजों का उपचार कर लेना चाहिये।
राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करने के बाद फफूंदी रोगों की संभावना नहीं रहती। किसान चाहें तो बेहतर उत्पादन के लिये एक हेक्टेयर खेत में 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर का मिश्रण डाल सकते हैं। ध्यान रखें कि खाद-उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच और विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार ही करें। ठीक प्रकार से बुवाई के बाद पूसा अरहर-16 से एक हेक्टेयर खेत में 3 लाख से भी ज्यादा पौधे मिल जाते हैं।
करीब 120 दिन बाद इसकी कटाई करके रबी सीजन की फसलें जैसे-सरसों, आलू और गेहूं की खेती कर सकते हैं। पूसा अरहर-16 की खेती के बाद मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है, जिसका फायदा अगली फसल को मिलता है। ये एक जल्दी पकने वाली किस्म है, इससे अच्छी पैदावार लेने के लिये जुलाई के प्रथम सप्ताह तक इसकी बुवाई का काम निपटा लेना चाहिये। अच्छी उपज के लिये जैविक विधि से अरहर की खेती करना फायदे का सौदा साबित हो सकता है।