पंजाब में बीते साल नकदी की फसल के रूप में मूंग की जमकर सरकारी खरीद केन्द्रों पर किसानों की भीड़ लगी थी। सरकार ने सभी मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग की रिकॉर्ड खरीद की थी। मूंग दलहनी फसल है और साल में दो बार उगायीं जाती है। सरकार के बढ़ावा देने से उत्साहित किसानों ने मूंग की खेती तो की, लेकिन सरकार ने इस बार खरीद ही नहीं की।
बेबस किसान अपनी मूंग की उपज को मंडियों में लेकर जाने के बाद निराश हुए मंडियों में पंजाब सरकार ने मूंग की खरीद ही नहीं की। किसानों को बेहद कम दामों पर खुले बाजार में अपनी उपज बेचने से घाटा हुआ।
केंद्र सरकार मूंग दाल का एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य 8555 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. लेकिन, सरकारी खरीद नहीं होने से निजी खरीदारों ने मौके का फायदा उठाते हुए किसानों से 7800-8000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से मूंग की खरीदारी की जा रही है.
मई से अब तक पंजाब की मंडियों में 26,966 मीट्रिक टन मूंग दाल की उपज आ चुकी है। जिसे निजी कारोबारियों ने खरीदा है। इसमें से 26,865 मीट्रिक टन मूंग करीब 99 फीसदी को उन्होंने एमएसपी से कम कीमतों पर खरीदा है। पिछले दो वर्षों के दौरान जब से राज्य सरकार ने ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई को बढ़ावा दिया है तब से खरीद एजेंसी मार्कफेड (markfed) ने केंद्र सरकार की ओर मूंग दाल की कुछ मात्रा खरीदी है।
मिली जानकारी के अनुसार सरकारी खरीद एजेंसी मार्कफेड (markfed) ने 2022 में उपज की औसत गुणवत्ता के संबंध में मानकों में ढील मिलने के बाद 5,500 मीट्रिक टन से अधिक मूंग की खरीद की थी। हालांकि, नेफेड ने पूरा स्टॉक लेने से इनकार कर दिया और केवल 2,500 मीट्रिक टन ही लिया। इसके चलते मार्कफेड और पंजाब मंडी बोर्ड को उस खरीद पर लगभग 40 करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान हुआ था।
बताया गया कि सरकारी खरीद नहीं होने पर 100 एकड़ में मूंग की खेती करने वाले बरनाला के एक किसान ने अपनी उपज एक निजी फर्म को एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच दी। इस साल अब तक मूंग की कोई सरकारी खरीद नहीं हुई है। हालांकि कुल उपज का 75 फीसदी पहले ही मंडियों में पहुंच चुका है जो निजी कारोबारियों ने खरीदा है।