उत्तराखंड में जंगली मशरूम की पांच नई प्रजातियां खोजी हैं, जो विज्ञान के लिए भी नई हैं। इनके साथ ही वैज्ञानिकों ने मशरूम की दो अन्य प्रजातियों के भी भारत में पहली बार देखे जाने की पुष्टि की है। बता दें कि, मशरूम की यह प्रजातियां खाने योग्य नहीं हैं, लेकिन इन्हें हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र और औषधि निर्माण के लिहाज से काफी उपयोगी माना जा रहा है। जानकारों का कहना है कि यह मशरूम खाने के लिए नहीं हैं लेकिन हिमालयी क्षेत्र के परिस्थिति तंत्र की बेहतर जानकारियों के लिए कई रास्ते खोलेगी। भारत के हिमालयी क्षेत्र में कई प्रकार के जंगली मशरूम हैं, लेकिन इनमें से ऐसा कई हैं जिनके बारे में बेहद कम जानकारी मौजूद है। यह खोज इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि हिमालय क्षेत्र जैव विविधता के लिहाज से कितना समृद्ध है। ऐसे में संरक्षण के प्रयासों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।
जंगली मशरूम की जिन प्रजातियों को खोजा गया है उनमें जंगली मशरूम की एक प्रजाति ‘लेसीनेलम बोथी’ रुद्रप्रयाग के बनियाकुंड में 2,622 मीटर की ऊंचाई खोजी गई है। वहीं ‘फाइलोपोरस स्मिथाई’ नामक प्रजाति भी बनियाकुंड में करीब 2,562 मीटर की ऊंचाई पर खोजी गई। वहीं मशरूम की दो प्रजातियां बागेश्वर जनपद में खोजी गई हैं। इनमें से एक ‘रेटिबोलेटस स्यूडोएटर’ 2,545 मीटर की ऊंचाई पर जबकि जंगली मशरूम ‘फाइलोपोरस हिमालयेनस’ करीब 2,870 मीटर की ऊंचाई पर मिली है। वहीं पांचवी प्रजाति ‘पोर्फिरेलस उत्तराखंडाई’ के मशरूम को चमोली के लोहाजंग में करीब 2,283 मीटर की ऊंचाई पर खोजा गया है।
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि मशरूम पोषण के साथ-साथ औषधीय गुणों से संपन्न होते हैं। यह इम्युनिटी बढ़ाने के साथ शरीर की वायरस से लड़ने में भी मदद कर सकते हैं। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने मशरूम की दो अन्य प्रजातियों लेसीनेलम सिनोअरेंटियाकम और जेरोकोमस रगोसेलस के भारत में पहली बार देखे जाने की पुष्टि की है। मशरूम के विभिन्न लाभकारी उपयोगों पर नियमित कार्य करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक मशरूम में प्राकृतिक रूप से मौजूद बायोएक्टिव तत्व हमारे शरीर में होने वाले संक्रमण के साथ-साथ वायरस, सूजन और रक्त के थक्के को जमने से रोकने में मददगार साबित हो सकते हैं। खास बात यह है कि यह तत्व मशरूम में प्राकृतिक तौर पर मौजूद होते हैं और वो ऐसे मशरूमों में भी पाए जाते हैं, जिन्हें ढूंढना आसान है।