पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में 11,220 वन पंचायतें हैं। इन वन पंचायतों को और अधिकार देने के लिए अब चालान काटने का अधिकार दिया जाएगा। इस आशय का एक प्रस्ताव शासन में है। जल्दी ही इस संबंध में सूचना जारी कर दी जाएगी। उत्तराखंड के वन पंचायतों को चालान करने का अधिकार देने की मांग अरसे से चली आ रही थी। उत्तराखंड पंचायती वन नियमावली 2012 में संशोधन के बाद प्रबंधन समितियां एक गवर्निंग बॉडी की तरह काम करेंगी। इसमें उन्हें छोटे वन अपराधों में चालान करने, वन क्षेत्र में कूड़ा-कचरा फेंकने में कार्रवाई, लीसा, शिलाजीत, कीड़ाजड़ी, चीड़ गुलिया और अन्य गैर प्रकाष्ठ वन उपज की बिक्री और प्रबंधन के अधिकार दिए जा सकते हैं। कई ऐसे मामले प्रबंधन समिति के सुपुर्द कर दिए जाएंगे, जिनके लिए अभी तक डीएफओ स्तर के अधिकारी की अनुमति लेनी पड़ती है।
इस संबंध में वन विभाग की ओर से प्रस्ताव तैयार कर शासन को सौंप दिया गया है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। प्रदेश में 453166.55 वर्ग किमी वन भूमि वन पंचायतों के अधीन है। जिसका पूरा रखरखाव वन पंचायतों से संबंधित प्रबंधन समितियां करती हैं। उत्तराखंड देश में अकेला ऐसा राज्य है, जहां वन पंचायतों का गठन किया गया है। इस संबंध में शीघ्र ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक होनी है, जिसमें अंतिम निर्णय लिया जाएगा। वन पंचायतों को समय की जरूरत के अनुसार और सशक्त बनाने के लिए संशोधन प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है।
ब्रिटिशकाल में ही वर्ष 1815 उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों (अब उत्तराखंड) में अंग्रेजों के शासन में यह व्यवस्था शुरू हुई थी। तब से लेकर उत्तराखंड राज्य गठन तक इसमें 14 बार महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। अब उत्तराखंड गठन के बाद से इसमें तीसरी बार संशोधन की तैयारी है।गौरतलब है कि उत्तराखंड के कुमाऊं में वन क्षेत्र 207793.96 वर्ग किलोमीटर है और यहां 5891वन पंचायतें हैं। इसी तरह गढ़वाल में 245372.59 वर्ग किलोमीटर वन-क्षेत्र में 5,329 वन पंचायतें हैं। चालान करने का अधिकार मिलने से अब वन पंचायतों को चालान करने से शासन की तरफ नहीं देखना होगा।PHOTO CREDIT – pixabay.com