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हिमाचल प्रदेश : काफल के पत्तों से होगा मानसिक रोगों का उपचार

काफल के पेड़ 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। इन पेड़ों पर वर्ष में सिर्फ एक बार ही फल लगता है। अधिक ठंडक और गर्मी वाले इलाकों में काफल के पेड़ नहीं मिलते। यही कारण है कि लोग वर्ष में सिर्फ एक बार मिलने वाले इस फल की खरीदारी के लिए इंतजार में रहते हैं। मंडी समेत प्रदेश के कई इलाकों में मई और जून में इसकी अधिक पैदावार होती है।

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के जंगलों में पाया जाता है। वैसे तो ये फल ज्‍यादात्तर गर्मियों के सीजन मतलब साल में दो माह मई और जून में पहाड़ी इलाको में बिकता हुआ दिखाई देता है।

हिमाचल प्रदेश में पाए जाने वाले जंगली औषधीय फल काफल के पत्तों से बना बाम (पेस्ट) मस्तिष्क पर लगाने से मानसिक रोग दूर भागेंगे। इसके पत्तों में मौजूद रासायनिक गुण बिना किसी साइड इफेक्ट के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को आराम पहुंचाते हैं। यही नहीं, पत्तों से बना बाम लगाने से बरसों पुरानी माइग्रेन की समस्या का निदान भी संभव है। कलस्टर विवि मंडी में तैनात असिस्टेंट प्रोफेसर वनस्पति विज्ञान एवं शोधकर्ता डॉ. तारा सेन ठाकुर ने अपने शोध में इन चामत्कारिक गुणों का खुलासा करते हुए बाम तैयार किया है। काफल के पौधों के चामत्कारिक रासायनिक गुणों को मल्टीडिसिप्लेनरी डिजिटल पब्लिशिंग इंस्टीट्यूट में प्रकाशित किया जा चुका है। इससे बनाए गए बाम का सफल प्रयोग विभिन्न आयु वर्ग के लोगों पर किया गया है। अब शोधकर्ता इस शोध को पेटेंट करके इसके बाम के व्यावसायिक इस्तेमाल की तैयारी कर रहे हैं, ताकि मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों को महंगी और घातक साइड इफेक्ट वाली दवाओं से छुटकारा मिल सके।

पेट संबंधी रोगों को खत्म करता है काफल काफल के पत्तों पर अब तक के अध्ययन में पता चला है कि इसमें मायरिकोनोल, प्रोएंथोसायडिन, बीटा-सिटोटेरोल, फ्राइडेलिन, टैराक्सेरोल, मायक्रिडिओल, मायरिकेटिन और मायरिकेटिन-3-रमनोसाइड आदि चिकित्सीय गुण हैं। यह सभी रसायन तंत्रिकाओं को आराम देते हैं। बता दें कि काफल फल में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट तत्व पेट से संबंधित रोगों को खत्म करते हैं। इस फल से निकलने वाला रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है। इसके निरंतर सेवन से कैंसर एवं स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। कब्ज और एसिडिटी भी दूर होती है।

काफी पुराने समय से कायफल की पत्तियों को मूत्र पथ या किडनी रोग के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर आपको पेशाब आने में दिक्कत होती है, तो कायफल खाना आपके लिए अच्छा हो सकता है। इससे अतिरिक्त विषाक्त पदार्थ, साल्ट, तरल पदार्थ और यहां तक कि फैट को भी खत्म होता है, जिसके कारण आपके गुर्दे अच्छे से कार्य कर सकते हैं।
छोटा सा दिखने वाला ये फल कैंसर जैसी बड़ी बीमारी को भी मात दे सकती है।

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के जंगलों में पाया जाता है। वैसे तो ये फल ज्‍यादात्तर गर्मियों के सीजन मतलब साल में दो माह मई और जून में पहाड़ी इलाको में बिकता हुआ दिखाई देता है।

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