एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत इंदौर जिले में ड्यूरम गेहूं को बढ़ावा देने के लिये चुना गया है। ड्यूरम गेहूं जिसे एक समय में मालवी गेहूं कहा जाता था, ड्यूरम के रूप मे जिले में एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत पुनः लोटेगा। ड्यूरम गेहूं जिसे कठिया गेहूं भी कहते है कई सालों तक मालवा की शान रहा है। इस गेहूं से मालवा को विशेष पहचान मिली है।
मध्य प्रदेश, विशेष कर मालवा में, ड्यूरम (कठिया) गेहूं का उत्पादन कर किसान खासा मुनाफा कमा रहे है। इससे बनने वाला सेमोलिना (रवा/सूजी के समकक्ष रिफाइंड आटा) दुनियाभर में पास्ता उद्योग की पहली पसंद है। पास्ता बनाने के लिए मध्य प्रदेश का दूरूम जिसे विदेश में ड्यूरम भी कहते है, सबसे बेहतर गेहूं माना जाता है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है सघन शोध के बाद तैयार हुई इस किस्म में वह सारे तत्व मौजूद है, जो अच्छे पास्ता बनाने के लिए उपयोगी है, जैसे प्रोटीन, ग्लूटेन के अलावा स्वाद, रंग, गूंधने के बाद उसका लचीलापन इत्यादि|
पास्ता के लिए इस गेहूं की अन्य किस्में पूसा (तेजस), पूसा (अनमोल), पूसा (मालव शक्ति) की भी काफी मांग है। इन गेहूं में ग्लूटेन के अलावा प्रोटीन, जिंक और आयरन की मात्रा अधिक होती है, जिससे पास्ता की गुणवत्ता बढ़ जाती है। इससे बनने वाला सेमोलिना अंतरराष्ट्रीय बाजार के मानकों पर खरा उतरते है।
बाजार में इस गेहूं के सैमोलिना की बड़ी मांग है। सैमोलिना बनाने के लिए पहले गेहूं की सिंकाई की जाती है। फिर इसका छिलका निकाल लिया जाता है। टुकड़ों से रिफाइंड चमकदार आटा तैयार किया जाता है, जो रवा या सूजी जैसा ही दानेदार होता है। इसी को सेमोलिना कहते है। किसानों का कहना है कि शरबती गेहूं (एचआई 1544) की तुलना में ड्यूरम वैरायटी का गेहूं का दाम कम मिलता है। ड्यूरम की अलग-अलग किस्मों का प्रसंस्करण होने से कृषकों को अधिक दाम मिल सकेंगे
कई दशकों से ड्यूरम गेहूं मालवा की शान रहा है। लेकिन किन्ही कारणों से इसका उत्पादन धीरे-धीरे कम होता गया। यह प्रजाति लगभग लुप्तप्राय हो गई थी। प्रोटीन और पोषण की प्रचुरता, प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने की क्षमता, अतिरिक्त खर्च नहीं होने के बावजूद किसानों ने इसकी बुवाई लगभग बंद कर थी। वर्तमान में अधिक उत्पादन देने वाली किस्मे विकसित होने से इसके क्षेत्र एवं उत्पादन में वृद्धि हुई है। जिले में इस प्रजाति के गेहूं को और बढ़ावा देने के लिये एक जिला एक उत्पाद में विशेष प्रयास किये जायेंगे।
इस योजना के तहत किसानों को प्रशिक्षित किया जायेगा। इसके बीज उपलब्ध कराने में मदद की जायेगी, गेहूं के विक्रय के लिये विशेष व्यवस्था होगी। इस गेहूं का निर्यात करने में सहयोग भी प्रदान किया जायेगा, जिससे की किसानों को अच्छे दाम मिल सके। किसानों में इस गेहू को बोने के लिये जागरूकता भी लाई जायेगी।
ड्यूरम, कठिया, मालवी तीनों एक ही श्रेणी के गेहूं हैं। इसे आजकल पोषण नाम से भी इसे जाना जाता है।
गेहूं की इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। साथ ही इसमे खनिज तत्व भी पाये जाते हैं। इस गेहूं की प्रमुख विशेषता है कि यह बारिश और ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक मार को भी काफी हद तक झेल सकता है। इस गेहूं का प्राकृतिक गुण है की इसकी बालियां बिखरती नहीं और दाना बाहर नहीं आता है।
मालवा में दुरुम गेहूं की खेती की चमक 60 के दशक के अंत में और 70 के दशक के शुरू में कम पैदावर की वजह से फीकी पड़ गई थी। वैज्ञानिकों दवारा अधिक पैदावार वाली इस किस्म के विकास और पास्ता उदयोग की ओर से इसकी बढ़ती मांग की वजह से इसकी चमक फिर लौट रही है। गेहूं की यह किस्म किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है और यह मैकरोनी, सेंवई आदि जैसे उत्पादों के लिहाज से पास्ता उद्योग के लिए बेहद उपयुक्त है।
प्रसंस्करित खाद्य उद्योग के अलावा गेहूं की यह किस्म दाल बाटी, चूरमा, लड्डू, दलिया जैसे पारंपरिक मालवी व्यंजनों के लिए भी लोकप्रिय है। अपने उत्पादों के लिए आयातित सूजी का इस्तेमाल करने वाला घरेलू पास्ता उदयोग दुरुम किस्म को पसंद करता है और उद्योग का मानना है कि इस गेहूं की गुणवत्ता अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है।