उत्तरप्रदेश राज्य सरकार ने किसानों को कृषि की नई तकनीकें अपनाने एवं कृषि लागत को कम करने वाले किसानों को सम्मानित करने का फैसला लिया है। इसके तहत ऐसे किसान जो आदर्श तरीके से नई तकनीक को अपनाकर गन्ने की खेती करेंगे उन्हें सम्मानित किया जाएगा। इसके लिए 1,555 किसानों का चयन किए जाने का लक्ष्य तय किया गया है। कम लागत पर गन्ना की खेती करने में सफल किसानों को प्रमाण-पत्र सरकार की ओर से देकर सम्मानित किया जाएगा|
राजय सरकार ने गन्ने की खेती के लिए नई तकनीकों को समन्वित कर खेती करने के लिए योजना शुरू की है इन तकनीकों पंचामृत का नाम दिया गया है। गन्ने की खेती के लिए समन्वित रूप से ट्रैंच प्लांटिंग, सहफसली खेती, रैटून मेनेजमेंट, ट्रैश मल्चिंग एवं ड्रिप सिंचाई जैसी नवीन तकनीकों को अपनाया जाएगा। इस प्रकार समन्वित प्रबंधन करते हुए पंचामृत पद्धत्तियों के माध्यम से जिन प्लाटों पर खेती की जाएगी उन्हें आदर्श मॉडल के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा।
आधुनिक तकनीक अपनाने से घटेगी उत्पादन लागत
गन्ने की खेती में आधुनिक तकनीकों का समन्वित रूप से इस्तेमाल करने पर गन्ने की उत्पादन लागत में कमी आएगी तथा गन्ने की उपज में बढ़ेगी। इसी के साथ पानी की बचत, भूमि की उर्वरता शक्ति में वृद्धि एवं बाजार तथा घरेलू मांग के अनुसार खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, शाक-भाजी आदि फसलों का उत्पादन जैसे अनेक लाभ होंगे।
किसानों को उत्तम गन्ना कृषक उपाधि से किया जाएगा सम्मानित
ऐसे किसान जो अपने गन्ने के खेतों में ट्रेंच विधि से बुवाई, सफसली खेती एवं ड्रिप के प्रयोग एक ही खेत पर शुरू करेंगे उन सफल कृषकों को विभागीय योजनाओं तथा कार्यक्रमों के अंतर्गत उपज बढ़ोतरी में प्राथमिकता तथा उत्तम गन्ना कृषक का प्रमाण-पत्र भी दिया जाएगा।
इस आदर्श मॉडल कार्यक्रम की शुरुआत शरदकालीन बुवाई से की जाएगी। इस बुआई के तहत प्रारंभिक तौर पर प्रदेश में कुल 1,555 कृषकों का चयन किया जाएगा। गन्ना खेती के आदर्श मांडल प्लाट का न्यूनतम क्षेत्रफल 0.5 हेक्टेयर तय किया गया है। इसके तहत मध्य एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रत्येक गन्ना विकास परिषदों में न्यूनतम 10 एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश की गन्ना विकास परिषद में न्यूनतम 5 आदर्श मांडल का चयन किया जाना अनिवार्य होगा।
वर्ष 2021-22 के अंतर्गत ट्रेंच विधि से बुवाई का लक्ष्य 2,20,000 हेक्टेयर गन्ने के साथ सहफसली खेती का लक्ष्य 2,20,000 हेक्टेयर एवं ड्रिप सिंचाई के आच्छादन का लक्ष्य 777 हेक्टेयरभी निर्धारित किया गया है।
उत्तरप्रदेश के सुलतानपुर में बोआई के घटते रकबे को बढ़ाने के लिए विभाग ओर विशेषज्ञों ने शुरू हुई बसंत कालीन बोआई में इसे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। गन्ना की उत्पादन लागत को कम करने और अधिक उत्पादन पाने के लिए ट्रैंच विधि के साथ इसकी सह फसली खेती पर जोर दिया जा रहा है। यहां बीते सत्र में 1206 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ना को बोआई हुई। इस साल 1480 हेक्टेयर में बढ़ाने का लक्ष्य है। इसके लिए किसानों को ट्रेंच विधि के साथ सहफसली खेती का प्रशिक्षण किसानों को कृषि विभाग की ओर से प्रदान किया जा रहा है।
इस विधि में खेत तैयार करने के बाद ट्रेंच ओपनर से लगभग 1 फीट चौड़ी और लगभग 25-30 सेमी गहरी नाली बनाई जाती है। इसमें एक नाली से दूसरी नाली की दूरी लगभग 120 सेमी की रखते हैं। इस तरह पूरे खेत में ट्रेंच बनाकर तैयार कर लेते हैं। अब ट्रेंच में सबसे पहले उर्वरक डाला जाता है। इसके अलावा रासायनिक खाद में डीएपी, यूरिया और पोटाश डालते हैं। इसके बाद प्रति हेक्टेयर के लिए 100 किलो यूरिया, 130 किलो डीएपी और 100 किलोग्राम पोटाश को तीनों मिलाकर ट्रेंच की तलहटी पर डालते हैं। जब उर्वरक डाला जाता है तो उसी समय बुवाई भी कर दी जाती है।
सह फसली खेती में एक पंक्ति में गन्ना तथा दूसरी कतार में उड़द, मूंग, लोबिया व अन्य दलहनी फसलों की बोआई की जाएगी।
ढाई-तीन महीने तक गन्ने की फसल छोटी रहती है। इसलिए इन फसलों को धूप हवा मिलने में कठिनाई नहीं होगी। अलग से इन फसलों को पानी भी नहीं देना होगा। वहीं दलहनी पौधों की जड़ें वातावरणीय नाइट्रोजन को इक्ट्ठा कर लेती हैं। यह फसल 75 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी जड़ों में एकत्रित नाइट्रोजन गन्ने की जरूरत पूरी करने में काम आता है। सह फसली खेती करने से दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ेगा। किसान की अतिरिक्त आय में वृद्धि होगी।