पान किसानों की ओर से की जा रही पान की खेती को फसल बीमा के दायरे में लाने की मांग को आखिरकार प्रदेश सरकार ने मान लिया है। अब प्राकृतिक आपदा, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, आंधी-तूफान से होने वाली पान की फसल के नुकसान की भरपाई बीमा कंपनी करेगी। इससे पान किसानों को बड़ी राहत मिलेगी।
पान की पैदावार अन्य फसलों के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील होती है। दरअसल पान की पैदावार सामान्य खेतों में नहीं होती है। इसके लिए विशेष तौर पर बरेजे बनाने पड़ते हैं। जो बांस, बल्ली, सींक और छप्पर की मदद से बनाए जाते हैं। इसको बनाने में पान किसान को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। यह बरेजा अस्थाई होता है। जो प्राकृतिक आपदा आंधी, तूफान, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि में नष्ट हो जाता है। पान की फसल भी तबाह हो जाती है। इससे किसानों की लागत तक नहीं निकल पाती है इसलिए इस नाजुक पान की फसल को फसल बीमा योजना में शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। प्रदेश की योगी सरकार ने मांग को स्वीकार कर किसानों को जैसे चुनावी तोहफा दे दिया है।
लगभग 8 साल पहले महोबा की तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ. काजल ने जीआई टैग ( जियोग्राफिकल इंडीकेशन रजिस्ट्री ) के लिए महोबा के देशावरी पान के लिए चौरसिया समाज सेवा समिति के माध्यम से पान किसानों से आवेदन भिजवाया था। दरअसल जीआई टैग भारत में किसी खास फसल और तैयार उत्पाद को दिया जाता है। यह एक प्रकार का लेबल होता है जिससे प्रोडक्ट की भौतिक पहचान होती है।
इस टैग को जारी करने के पहले सामान की गुणवत्ता व पैदावार की जांच की जाती है। भारत में पहला जीआई टैग दार्जिलिंग की चाय को मिला था। भारत में कुछ समय पूर्व तक 272 वस्तुओं को जीआई टैग मिल चुका था।
महज पांच दशक पहले महोबा में पान की खेती 300 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में होती थी। आल्हा ऊदल के बाद यहां के देशावरी पान ने महोबा को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी। लेकिन गुटका संस्कृति के चलन और पान किसानों को कोई सुरक्षा न मिलने के कारण पान की खेती सिमटकर 20 एकड़ रह गई थी।
पान पर काम करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रामसेवक चौरसिया ने बताया कि दोनों फैसले पान की खेती को फिर से संजीवनी दे सकते हैं। किसान फिर से पान की खेती के प्रति रुचि दिखाएंगे। तभी ग्रीन गोल्ड के नाम से मशहूर पान के दिन बहुरेंगे।