बासमती थान की खुशबू चावल की दुकान में उसकी पहचान करा देती है। अपनी लज्जत और लंबाई की वजह से देहरादून का बांसमती देशभर की पसंद है। बांसमती का मतलब कभी देहरादून के खुशबूदार चावल होता था। वर्ष 2018 में 680 किसान ही 410.18 हेक्टेयर भूमि में देहरादून बासमती धान की खेती होती थी। वहीं, वर्ष 2022 में यह रकबा घटकर 157.83 हेक्टेयर पर आ गया है।
देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में शहरीकरण के चलते चार साल में दून बासमती चावल का क्षेत्रफल 252 हेक्टेयर घट गया है। देहरादून बासमती चावल के संरक्षण और संवर्धन के लिए उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड आगे आया है। बोर्ड के सहयोग से उत्तरा रिसोर्स डेवलपमेंट संस्था ने बासमती चावल टाइप-3 के शोध कार्य किया, जिसमें बासमती चावल का क्षेत्रफल तेजी से घटने पर चिंता जताई है।
उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की ओर से देहरादून बासमती धान के संरक्षण और संवर्धन पर कार्यशाला के शुभारंभ पर वन मंत्री सुबोध उनियाल ने देहरादून बासमती धान का क्षेत्रफल घटने पर चिंता जताई। कहा, सबसे पहले बासमती से संबंधित कृषि भूमि का संरक्षण करने की आवश्यकता है।
श्री उनियाल ने कहा- बासमती की खेती के लिए किसानों को सिंचाई सुविधा के साथ मार्केटिंग की व्यवस्था का ध्यान देना होगा। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में बासमती धान की खेती को बढ़ावा देना चाहिए। कार्यशाला में बताया कि वर्ष 2018 में 680 किसान 410.18 हेक्टेयर भूमि में देहरादून में बासमती धान की खेती होती थी। वहीं, वर्ष 2022 में यह 157.83 हेक्टेयर पर आ गया है।
उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. धनंजय मोहन ने कहा, वैज्ञानिकों, किसानों और व्यापारियों के देहरादून की बासमती धान के संरक्षण के लिए कार्य योजना बनाई जा रही है। पंडित गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि पंतनगर के प्रो. आईडी पांडे ने कहा, बासमती धान के संरक्षण पर विवि लगातार काम कर रहा है। बासमती की नई प्रजाति पंत-एक और पंत-दो विकसित की है।
इस मौके पर बोर्ड के सदस्य आरके मिश्र, खंड विकास अधिकारी सहसपुर सोनम गुप्ता, रायपुर की अर्पणा बहुगुणा, जलागम प्रबंधन परियोजना की निदेशक नीना ग्रेवाल समेत अन्य अधिकारी व किसान मौजूद थे।