भारत सरकार ने किसानों और विज्ञानिकों को 114 मिलियन टन गेहूं की पैदावार का नया लक्ष्य दिया है। कॄषि वैज्ञानिकों को इसके लिए अधिक पैदावार वाली नई किस्मों, उच्च गुणवत्तापूर्ण बीज, नई तकनीक को समाहित करते हुए किसानों के खेतों तक पहुंचाना है, किसानों को जागरूक करना है।
देश के वैज्ञानिक एक बार फिर नए लक्ष्य के साथ गेहूं की पैदावार बढ़ाने में जुट गए हैं। पिछले साल का लक्ष्य 112 मिलियन टन हासिल करने के बाद अब केंद्र सरकार ने वर्ष 2024 के लिए देश की गेहूं पैदावार का नया लक्ष्य (114 मिलियन टन) निर्धारित किया है। इसका खुलासा करते भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक एवं सचिव डेयर डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि हमें नई तकनीक, नई किस्मों के बीज, किसानों तक पहुंचाकर और उन्हें जागरूक कर नए लक्ष्य को पाना है।
देश के वैज्ञानिक एक बार फिर नए लक्ष्य के साथ गेहूं की पैदावार बढ़ाने में जुट गए हैं। पिछले साल का लक्ष्य 112 मिलियन टन हासिल करने के बाद अब केंद्र सरकार ने वर्ष 2024 के लिए देश की गेहूं पैदावार का नया लक्ष्य (114 मिलियन टन) निर्धारित किया है। इसका खुलासा करते भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक एवं सचिव डेयर डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि हमें नई तकनीक, नई किस्मों के बीज, किसानों तक पहुंचाकर और उन्हें जागरूक कर नए लक्ष्य को पाना है।
भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान केंद्र करनाल के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि एक वक्त था जब देश गेहूं आयात करता था लेकिन अब गेहूं निर्यात किया जा रहा है। पिछले साल केंद्र सरकार ने 112 मिलियन टन लक्ष्य रखा था। जिस तरह का विपरीत मौसम रहा, उससे ये लक्ष्य काफी बड़ा लग रहा था लेकिन ये गर्व की बात है कि हमारी तकनीकियों और जलवायु परिवर्तनशील किस्मों के कारण ही विपरीत मौसम का कोई खास असर फसल की पैदावार पर नहीं पड़ा।
पिछले साल देश के 45 प्रतिशत रकबे में जलवायु परिवर्तनशील किस्में बोई गई थी। जिसके परिणाम स्वरूप देश ने बड़ी आसानी से 112 मिलियन टन का लक्ष्य पार कर लिया। ये देश की बड़ी उपलब्धि हैं।
कॄषि वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन बड़ी चुनौती है, इसलिए गेहूं हो या जौ या फिर कोई फसल, जो किस्म नई निकालें, वह जलवायु सहनशील होनी चाहिए। ऐसी किस्में जो अत्यधिक बारिश, सूखा और अधिक तापमान सहकर भी बेहतर पैदावार दे सकें।
जलवायु परिवर्तन पर निकरा परियोजना व कई अन्य तकनीक पर काम हो रहा है। केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) सहित आईसीएआर के कई संस्थानों पर काफी पहले से ही काम चल रहा है।