मध्य प्रदेश के नेता और किसानों की चिंता एक जैसी है है। इस साल मानसून के खत्म होने के बाद सूबे में विधान सभा के चुनाव होने हैं। नतीजों के लिए सभी पार्टियों के नेता आसमान की तरफ ताक रहे हैं। बारिश न होने से किसान भी आसमान देख रहे हैं। सूबे में 45 जिले ऐसे हैं जहां बारिश न होने से किसानों की चिंता बढ़ गई है।
जुलाई और अगस्त महीने में मानसून की बारिश में खेत और आंगन दोनों भीगते हैं।इस साल
अगस्त बीतने के बाद 45 जिलों में सूखे जैसे हालात हैं । दो बार मानसून की लय क्या टूटी, किसानों की आस टूट गई। कुलजमा आठ दिन ही बारिश हुई।अब सितंबर से उम्मीदें हैं। इन उम्मीदों में शाय़द भी जुड़ा हुआ है।
मध्यप्रदेश में अगस्त महीने में इन जिलों में कहीं 12% तो कहीं 94% तक कम बारिश हुई है, जबकि प्रदेश में अगस्त महीने में ही मानसून की 40% तक बारिश होती रही है।
भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगस्त में दो बार करीब 21 दिन तक मानसून ब्रेक रहा। इस कारण अधिकांश जिलों में सूखे जैसे हालात हैं। इस बार भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और उज्जैन में तो बीते 11 साल में सबसे कम बारिश हुई है।
मिली जानकारी के अनुसार पहली जून से 31 अगस्त तक औसतन 26.05 इंच बारिश हो चुकी है। अनुमान लगाया था कि इस दौरान 30.81 इंच बारिश होनी चाहिए थी। इस हिसाब से 15% कम बारिश हुई है। अगस्त महीने में 7.94 इंच पानी गिरा है, जबकि 13.15 इंच बारिश होनी चाहिए थी। इस हिसाब से करीब 40% पानी कम गिरा है।
मौसम विज्ञानियों के अनुसार मध्यप्रदेश में पहली जून से मानसून की हलचल शुरू हो जाती है, जो 30 सितंबर तक रहती है। मानसून के विशेषकर दो महीने जुलाई और अगस्त में अच्छी बारिश होती है, लेकिन इस बार जुलाई में पूर्वी मध्यप्रदेश में 25% तक बारिश कम हुई, जबकि पश्चिमी हिस्से में 10 से 12% ज्यादा बारिश दर्ज की गई थी।