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केरल में मानसून ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया

भारत में मानसून का प्रवेश द्वार केरल को कहा जाता है। केरल की दहलीज को भिगोकर ही मानसून अन्य सूबों में बरसता है।
बीते चार साल से केरल में मानसून ने किसानों की उम्मीदें तोड़ दी हैं। केरलवासियों के सामने अब कई तरह के संकट हैं।

केरल,अब पिछले कुछ वर्षों में सबसे खराब सूखे का सामना कर रहा है, जहां मौसमी वर्षा में 44 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। राज्य भर से आ रही रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि स्थिति बदतर होने वाली है।

पिछले चार वर्षों के विपरीत, जब राज्य में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान उच्च तीव्रता वाली बारिश हुई, जिसके परिणामस्वरूप कई बाढ़ और भूस्खलन हुए, अब तेजी से सूखे के अशुभ संकेत हैं। ”उम्मिनी पदशेखरा समिति के अध्यक्ष पी अबुबकर ने कहा। , पलक्कड़ जिले के उम्मिनी क्षेत्र में चावल उत्पादकों का एक मंच। पानी न बरसने से इस इलाके में धान की पहले जैसी भरपूर बुवाई नहीं हो सकी है। खेत बरसात के लिए आसमान देख रहे हैं।

केरल में कालीमिर्च भी होती है। बारिश के अभाव में काली मिर्च की बेलों में नये अंकुरों की कमी हो जाती है। केरल में, वायनाड और इडुक्की प्रमुख काली मिर्च उत्पादक क्षेत्र है। वायनाड से कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी सांसद हैं।किसानों को लगता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के तरीके में आये में बदलाव के कारण इस बार उत्पादन निराशाजनक होगा।

मसालों की खेती के लिए मशहूर केरल में, इलायची, अदरक, कॉफी और अन्य नकदी फसलों के उत्पादकों के बीच भी असुरक्षा की भावना व्याप्त है। बीते चार साल से किसानों को बुरी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

इडुक्की जिले के ऊंचे इलाकों में उडुंबनचोला तालुक में काली मिर्च के किसान भी चिंतित हैं। बारिश की कमी ने क्षेत्र में काली मिर्च की बेलों के फूल पर बुरा असर डाला है, जहां इस साल 61 प्रतिशत की कमी का अनुमान लगाया गया है।बारिश के अभाव में काली मिर्च की बेलों में नये अंकुरों की कमी हो जाती है। केरल में, वायनाड और इडुक्की प्रमुख काली मिर्च उत्पादक क्षेत्र हैं।

​अलाप्पुझा जिले के निचले कुट्टनाड क्षेत्र में, बारिश की कमी चावल की खेती के लिए एक बड़ा खतरा बन गई है, समुद्र से खारे पानी के उच्च घुसपैठ से स्थिति और खराब हो गई है। इसका धान की बुवाई पर भी असर पड़ा है।

इसी तरह कुट्टनाड में, निवासियों को अपनी घरेलू जरूरतों के लिए आसपास के बैकवाटर क्षेत्र में दूषित पानी पर निर्भर रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सुरक्षित पेयजल स्रोतों की मांग को पूरा करने के लिए उन्हें सरकारी नावों का इंतजार करना होगा। ​आदिवासी गढ़ अट्टाप्पड में पीने के पानी की भारी कमी है। क्षेत्र में कुएं और तालाब सूख गए हैं, जहां भूजल चिंताजनक स्तर तक कम हो गया है।

पीने के पानी की कमी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पलक्कड़ में एरुथेमपैथी, वडकरपति और कोझिंजमपारा पंचायतों में, निवासियों को पानी ले जाने वाले ट्रकों का इंतजार करना पड़ता है जो सप्ताह में तीन बार आते हैं।

​राज्यभर में बारिश नहीं होने से गर्मी का स्तर भी बढ़ने लगा है। पलक्कड़ में एकीकृत ग्रामीण प्रौद्योगिकी केंद्र ने दिन का तापमान 32.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया। आम तौर पर अगस्त और सितंबर में यह 28 से नीचे रहता है।

​दक्षिण पश्चिम मानसून के चार महीनों में से दो महीने पहले ही खत्म हो चुके हैं और विशेषज्ञों का कहना है कि सूखा अब कम से कम चार महीनों तक फैल सकता है। यह दक्षिणी प्रायद्वीप के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी सामान्य से अधिक बारिश के पहले के पूर्वानुमान के विपरीत है।

​बारिश की कमी ने बिजली क्षेत्र में भी बड़ी चिंता पैदा कर दी है। बीती 20 अगस्त को उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, राज्य बिजली बोर्ड द्वारा प्रबंधित जलाशयों में केवल 36 प्रतिशत पानी बचा है। सूबे में बिजली उत्पादन में कमी का सीधा संबंध उत्पादन और उद्योगों पर होगा।

मौसम विभाग ने अनुमान लगाया था कि प्रशांत महासागर में अल नीनो (सतह जल का गर्म होना) ने पश्चिमी हवाओं को कमजोर कर दिया है और मानसून से ठीक पहले अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में चक्रवात बनने से केरल में मानसूनी बारिश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। प्रशांत महासागर में अल नीनो (सतह जल का गर्म होना) ने पश्चिमी हवाओं को कमजोर कर दिया है और मानसून से ठीक पहले अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में चक्रवात बनने से केरल में मानसूनी बारिश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इससे हिमालयी सूबों में ज्यादा बारिश का असर दिखाई देगा। मौसम विज्ञानियों का अंदेशा सही निकला है।
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