सहजन एक औषधीय वॄक्ष है। सहजन की जड़, पत्तियों, फल, फूल, फलियां पर और रस ,सभी उपयोगी है। आयुर्वेद में सहजन को मनुष्य की पावर हाउस की उपमा देते हुए इसके गुणों का बखान किया गया है। बकरी का वज़न बढ़ाने के लिए सहजन के पत्तों को चारे के रूप में उपयोग किया जाता है।
चारे के रूप में इसकी हरी या सूखी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुने से अधिक और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है।
केंद्र की ओर से राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे प्रधानमंत्री पोषण योजना में सहजन के साथ स्थानीय स्तर पर सीजन में उगने वाले पोषक तत्वों से भरपूर पालक, अन्य शाक-भाजी एवं फलियों को भी शामिल करें।
सहजन की उपयोगिता कुपोषण के विरुद्ध जारी जंग में भी है। भारत में यह कुपोषण को दूर करने में मदद करने में समर्थ है।
राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण 2019-2020 के मुताबिक देश के करीब 32 फीसद बच्चे अपनी उम्र के मानक वजन से कम (अंडरवेट) हैं।
भारत में करीब 67 फीसद बच्चे ऐसे हैं जो अलग-अलग वजहों से एनीमिया (खून की कमी) से पीड़ित हैं। अपनी खूबियों के नाते ऐसे बच्चों के अलावा किशोरियों, मां बनने वाली महिलाओं के लिए सहजन वरदान साबित हो सकता है।
सहजन की पत्तियों एवं फलियों में 300 से अधिक रोगों की रोकथाम के गुण होते हैं। इनमें 92 तरह के विटामिन्स, 46 तरह के एंटी ऑक्सीडेंट, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। सहजन के गुणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह
- विटामिन सी- संतरे से सात गुना।
- विटामिन ए- गाजर से चार गुना।
- कैल्शियम- दूध से चार गुना।
- पोटैशियम- केले से तीन गुना।
- प्रोटीन- दही से तीन गुना।
दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है। साथ ही इसकी फलियों और पत्तियों का कई तरह से प्रयोग भी। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने पीकेएम-1 और पीकेएम-2 नाम से दो प्रजातियां विकसित की हैं। पीकेएम-1 यहां के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुकूल भी है। यह हर तरह की जमीन में हो सकता है। बस इसे सूरज की भरपूर रोशनी चाहिए।
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