कृषि, वानिकी और मत्स्य उत्पादों के मूल्य’ नाम से आई रिपोर्ट के अनुसार, गोबर का 7.95 प्रतिशत सकल सालाना बढ़ोतरी दर से बढ़ा है। यह वित्त वर्ष 2011-12 (वित्त वर्ष 12) में 32,598.91 करोड़ रुपये था जो अब वित्त वर्ष 21 में बढ़कर 35,190.8 करोड़ रुपये हो गया है। वहीं चारे का सालाना बढ़ोतरी दर 10 साल के बीच 1.5 प्रतिशत घटकर वित्त वर्ष 21 में 31,980.65 करोड़ रुपये हो गया है, जो वित्त वर्ष 12 में 32,494.46 करोड़ रुपये था। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च के डायरेक्टर महेंद्र देव ने कहा कि गोबर की मांग बढ़ी है, क्योंकि इसका इस्तेमाल हाल के सालों में बायोगैस और बायो फर्टिलाइजर में बढ़ा है। उन्होंने कहा, “इसके पहले खादी व ग्रामीण उद्योग आयोग ने खादी प्राकृतिक पेंट नाम से एक पहल की थी, जिसमें गोबर मुख्य सामग्री थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ सरकार ने गोधन न्याय योजना शुरू की है।”
गोबर का मूल्य और भी बढ़ने की संभावना है, क्योंकि केंद्र व राज्य सरकारें गोबर खरीदने के लिए कई सरकारी योजनाएं चला रही हैं। साथ ही केंद्र व राज्य सरकारों के द्वारा गोबर को ऊर्जा के स्रोत के रूप में भी बढ़ावा दिया जा रहा है और इस्तेमाल में लाया जा रहा है। सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में पशुओं से हर साल 100 मिलियन टन गोबर मिलता है जिसकी कीमत 5,000 करोड़ रुपए है। इस गोबर का ज्यादातर प्रयोग बायोगैस बनाने के अलावा कंडे और अन्य कार्यों में किया जाता है। भारत पिछले कई वर्षों से विश्व में सबसे ज्यादा पशु और सबसे ज्यादा दूध देने वाला देश है। लेकिन इसका दूसरा पहलू ये है कि भारत में प्रति पशु दुग्ध उत्पादकता बहुत कम है। बीसवीं पशुगणना के अनुसार भारत में गाय-भैंसों की संख्या करीब 30 करोड़ है, जिसमें से 14.51 करोड़ सिर्फ गाय हैं। अगर दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) को देखें तो पूरे देश में ये आंकड़ा सिर्फ 12 करोड़ 50 लाख के आसपास है।