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नुकसान के बाद भी फसल-बीमा कम्पनी नहीं सुनती तो उपभोक्ता-फोरम है न

क‍िसान फसल बीमा कंपन‍ियों की मनमानी से परेशान भी हैं। इस योजना के ज्यादातर न‍ियम कंपन‍ियों के हक में हैं, इसल‍िए वो क्लेम देने में आनाकानी करती हैं. फसल नुकसान होने के बावजूद क्लेम पाना आसान नहीं है। उसके ल‍िए क‍िसानों को कई शर्तों का दर‍िया पार करना होता है। क‍िसान इस योजना का मुख्य क‍िरदार जरूर हैं, लेक‍िन इसके न‍ियम और शर्तें तय करते वक्त कृष‍ि मंत्रालय के अध‍िकारी और बीमा कंपन‍ियों के प्रत‍िन‍िध‍ि ही होते हैं, उसमें क‍िसानों की कोई भूम‍िका नहीं होती. इसील‍िए क‍िसान ‘बीमाधड़ी’ के श‍िकार होते हैं। इसके बावजूद कुछ ऐसे प्रावधान हैं ज‍िनके जर‍िए क‍िसान इन कंपन‍ियों से लड़कर अपना हक ले सकते हैं या फ‍िर सावधानी बरत कर योजना में कदम बढ़ा सकते हैं।

फसल बीमा योजना में क‍िसानों को अब तक सबसे बड़ा अध‍िकार यही है क‍ि पूरा प्रीम‍ियम जमा होने और फसल नुकसान के सैंपल के ल‍िए क्रॉप कट‍िंग होने के 30 द‍िन के भीतर अगर क्लेम नहीं म‍िलता है तो संबंध‍ित बीमा कंपनी क‍िसान को 12 फीसदी ब्याज जोड़कर क्लेम देगी। अगर प्रीम‍ियम काटने के बावजूद फसल नुकसान का क्लेम नहीं म‍िला है तो आप उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं. कंपनी की मनमानी के ख‍िलाफ वहां से अक्सर न्याय म‍िलता है।

क‍िसान का एक और अध‍िकार है। वो ज‍िस फसल के ल‍िए लोन ले रहा है उसी का बीमा करवाए ऐसा जरूरी नहीं है। लेक‍िन, इसके ल‍िए भी बैंक में ल‍िख‍ित तौर पर देना होगा।

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