केले का पौधा कीट-रोगों के लिए सबसे आसान शिकार माना जाता है। कई बार इन कीट और रोगों के प्रकोप के चलते फसल पूरी तरह से चौपट हो जाती है। हालांकि, अब टिशू कल्चर तकनीक के जरिये केला की उन्नत किस्मों के मजबूत पौधे तैयार किए जा रहे हैं। ये पौधे पूरी तरह स्वस्थ और रोग प्रतिरोधी होते हैं. इनमें आसानी से रोग नहीं लगते हैं।
टिशू कल्चर तकनीक से केले की खेती में फल उत्पादन के लिए सिर्फ 12 से 14 महीने लगते हैं। साधारण तरीके से केले की खेती में फल उत्पादन में तकरीबन 17 से 18 महीने का समय लगता है। टिशू कल्चर तकनीक से उगाए गए पौधे के एक पेड़ से कुल 60 से 70 किलोग्राम फलों का उत्पादन मिल जाता है।
बिहार सरकार टिशू कल्चर तकनीक से केले की खेती पर कुल 50 फीसदी की सब्सिडी दे रही है। एक हेक्टेयर में केले की खेती की ईकाई लागत कुल 1,25,000 रुपये रखी गई है । ऐसे में 50 प्रतिशत सब्सिडी के हिसाब से किसानों को केले की खेती के लिए कुल 62, 500 रुपये मिलेंगे ।
बिहार में केले की खेती करीब 32 हजार हेक्टेयर में हो रही है। प्रतिवर्ष 13 लाख टन केला का उत्पादन हो रहा है। अब यहां केला से संबंधित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगाने पर काम चल रहा है। सर्वाधिक 34 सौ हेक्टेयर में खेती वैशाली जिले में हो रही है। केले से संबंधित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन के साथ आर्थिक समृद्धि के नए अवसर गढ़े जा सकते हैं।