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उत्तर प्रदेश : पूर्वांचल के किसानों की किस्मत बदलेगी केला की खेती
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बिहार : दम तोड़ रहे ‘चिनिया केला ‘ को रोग-मुक्त होने से मिला नया बाज़ार

चिनिया केले के गुणवत्तायुक्त निरोगी पौधे का प्रयोगशाला में कई स्तरों पर परीक्षण किया जा चुका है। इसके बाद पौधों को मिट्टी में लगाया गया है। टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों से चिनिया केला 13 से 15 माह में तैयार हो जाता है, जबकि सामान्य पौधों से फल 16 से 17 महीने में तैयार होते हैं। टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों की खासियत यह है कि इनसे 30-35 किलोग्राम केले निकलते हैं।

करीब तीन दशक पूर्व तक औषधीय गुणों से भरपूर खास स्वाद-सुगंध वाले चिनिया और मालभोग केले बिहार की पहचान हुआ करते थे। 80 प्रतिशत उत्पादन इन्हीं दोनों केलों का था। बाद के समय में पनामा बिल्ट बीमारी के कारण केले की इन किस्मों की खेती कम होती चली गई।

तीन दशक पूर्व तक औषधीय गुणों से भरपूर खास स्वाद-सुगंध वाले चिनिया और मालभोग केले बिहार की पहचान हुआ करते थे। 80 प्रतिशत उत्पादन इन्हीं दोनों केलों का था। बाद के समय में पनामा बिल्ट बीमारी के कारण केले की इन किस्मों की खेती कम होती चली गई।

चिनिया केला मुलायम, सफेद, सुगंधित और खट्टे-मीठे स्वाद के अनोखे मिश्रण के साथ होता है। आटा और चिप्स बनाने में भी इनका प्रयोग होता है। जिनकी बाजार में काफी मांग है। यह आयरन से भरपूर, आसानी से पचने वाला, सस्ता और लोकप्रिय फल है। इसके नियमित सेवन से दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। इसके अलावा यह गठिया, उच्च रक्तचाप, अल्सर और किडनी से संबंधित रोगों से बचाव में भी सहायक है। यह आंख की रोशनी और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का भी काम करता है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन व मिनरल होते हैं।

विश्व के केला उत्पादन का 25 प्रतिशत उत्पादन भारत में होता है, जबकि विश्व के अनुपात में केले की खेती का 15 प्रतिशत रकबा भारत में है। चिनिया केला थोड़ा अम्लीय होता है। इस कारण इसका स्वाद बेहतर आता है।

टिश्यू कल्चर लैब में चिनिया केले का गुणवत्तापूर्ण और निरोग पौधा सृजित करने पर अनुसंधान किया गया है। जल्द ही किसानों को बड़े पैमाने पर पौधे उपलब्ध कराए जाएंगे।

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