झारखंड में मड़ुआ की औसतन पैदावार सात से साढ़े सात क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जबकि जो सफेद मड़ुआ की प्रजाति जिसका नाम झारखंड व्हाइट मड़ुआ है। मडुआ की नई किस्म की वैज्ञानिक पद्धति से बुवाई करें तो किसान को प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल तक का उत्पादन मिल सकता है। इस तरह से सफेद मड़ुआ से तीन गुणा अधिक उत्पादन हासिल किया जा सकता है।
सफेद मड़ुआ की खेती के लिए तीन किलो प्रति एकड़ बीज की जरूरत पड़ती है। यह उपज 105 से 110 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। बाज़ार में इसका अच्छा दाम भी मिलता है।
झारखण्ड की जमीन मोटे अनाज की खेती के लिए अनुकूल है। आमतौर पर किसान यहां धान और मडुआ की बुवाई करते हैं। बीते दस साल से अनियमित और कम बरसात होने से झारखण्ड में खेती और किसान, सरकार के भरोसे हैं। किसानों को आर्थिक दशा में सुधार के लिए सूबे में सोरेन-सरकार बागवानी और कम सिंचाई वाले मोटे अनाज बोने वाले किसानों को बढ़ावा दे रही है। मडउंआ भी कम सिंचाई वाले मोटे अनाज में शामिल है।
बिहार से अलग सूबा बनने के बाद झारखण्ड में कुल 28 लाख हेक्टेयर खेती लायक ज़मीन है। इसमें से करीब बीस लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है। करीब छह लाख हेक्टेयर असमतल जमीन है, जो मोटे अनाज की खेती के लिए बहुत अनुकूल है। वहीं बाकी बचे तीन लाख हेक्टेयर में डीएसआर तकनीक से धान की बुवाई की जाती है।
झारखंड में पिछले साल मात्र 20-21 हजार हेक्टेयर में मोटे अनाज की खेती की गई थी, जिसमें सबसे अधिक मड़ुआ की ही खेती होती है। इस बार राज्य की सोरेन-सरकार ने 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मोटे अनाज की खेती करने का लक्ष्य रखा है। मुंडा सफेद नयी किस्म से सरकार को लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद है।
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