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गेहूँ की नई किस्म के-1616 को पलेवा करके बोने से ही 35 कुन्टल तक उपज

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसएवि) के विज्ञानियों को बड़ी सफलता मिली है। उन्होंने के-1616 नाम से गेहूं की ऐसी प्रजाति विकसित की है, जो बिना सिंचाई किए ही 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देगी।

यही नहीं, अगर इसे एक या दो बार सिंचाई मिल जाए तो 50 से 55 क्विंटल तक उपज मिलेगी। इससे कम सिंचाई वाले क्षेत्र के किसानों को फायदा होगा और बारिश न होने पर भी फसल बर्बाद नहीं होगी। भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से इस प्रजाति को उत्तर प्रदेश में बोआई के लिए अधिसूचित (रिलीज) किया गया है।

सीएसएवि के रवी शस्य अनुभाग के प्रभारी अधिकारी व वरिष्ठ गेहूं अभिजनक डा. विजय कुमार यादव ने बताया कि के-1616 प्रजाति, दो प्रजातियों एचडी-2711 व के-711 को मिलाकर संकर प्रजाति के तौर पर विकसित की गई है।

विभाग के विज्ञानियों डा. सोमवीर सिंह, डा. एलपी तिवारी, डा. वाइपी सिंह, पीएन अवस्थी, पीके गुप्ता के सहयोग से वर्ष 2016-17 से लगातार चार वर्षों तक पूरे देश में इस प्रजाति के ट्रायल किए गए। इसमें सामने आया कि यह प्रजाति केवल खेत में पलेवा करके बोई जा सकती है।

*गेहूं की नई प्रजाति खासियत
रोगरोधी, दाना भी बड़ा और लंबा।

*के-1616 प्रजाति में काला, पीला, भूरा पर्ण रोग लगने का खतरा नहीं है।

*दाना बड़ा और लंबा होता है।
इसमें आम गेहूं की प्रजातियों की तरह 11.77 प्रतिशत प्रोटीन है।

*प्रजाति 120 से 125 दिन में पककर तैयार होती है, जबकि और प्रजातियां 125 से 130 दिन में पकती हैं।

*इसे प्रदेश में कहीं भी बोया जा सकता है और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी अच्छी उपज मिलेगी।

*अगले वर्ष से इसके बीज मिलने शुरू होंगे।

शोध परिणामों के आधार पर कुछ माह पूर्व इस प्रजाति को रिलीज कराने के लिए केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के पास भेजा गया था। अब इसे भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया है।

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