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बिहार : बांका के कतरनी चावल की ख़ुश्बू खाड़ी देशों तक पहुंची

भागलपुरी कतरनी चावल की खुशबू और जायका लाजवाब होता है। वन डिस्ट्रिक वन क्राप के तहत भागलपुरी कतरनी बांका के नाम कर दी गई है। भागलपुर जिले को जर्दालू आम और बांका जिले को कतरनी धान को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी दी गई है। 1991 में भागलपुर जिले से बांका को अलग कर दिया गया। इस कारण दोनों जिलों के चावल को बाजार में भागलपुरी कतरनी के नाम से ही प्रसिद्धि मिली है।

राज्य सरकार की ओर से जो सूची जारी की गई थी, उसमें कतरनी धान बांका के नाम कर दिया गया है। किसानों का कहना है कि कतरनी की खेती भागलपुर जिले में अधिक होती है। किसानों का कहना है कि इलाके की कतरनी कहीं की भी हो, भागलपुरी कतरनी के नाम से ही बिकेगी। इस इलाके में होने वाले धान की खुशबू के कारण इसका चावल व चूड़ा देश-विदेश में विख्यात है।

भागलपुरी कतरनी को जियो टैंगिंग भी मिल गया है। कृषि विभाग का तर्क है कि बांका में धान उत्पादन क्षेत्र अधिक है, इसलिए कतरनी धान को बढ़ावा देने के लिए बांका जिले को जिम्मा सौंपा गया है। इधर, कतरनी धान को बढ़ावा देने के नाबार्ड ने गोराडीह प्रखंड में किसान उत्पादक कंपनी बनाई है। यहां से किसानों के समूह को वित्तीय सहायता के साथ-साथ बाजार भी उपलब्ध कराएगा।

इस साल अधिकाधिक किसान कतरनी धान लगाने को उत्सुक हैं। 2015-16 में 968.77 एकड़ में ही इसकी पैदावार होती थी। पिछले साल भागलपुर, बांका व मुंगेर जिले में 17 सौ हेक्टेयर में इसकी उन्नत किस्म की खेती की गई थी। 25 से 26 हजार क्विंटल धान की उपज हुई थी। इस साल इसका रकवा बढ़ाकर दो हजार से 25 सौ हेक्टेयर करने की तैयारी चल रही है। किसान अभी से कतरनी चावल व चूड़ा विदेश भेजने को लेकर समूह बनाकर एपिडा से रजिस्ट्रेशन कराने की तैयारी में जुट गए हैं। आसपास के क्षेत्रों में कतरनी धान से चूड़ा व चावल तैयार करने के लिए 20-22 नई मिलें खुल जाने से इस क्षेत्र में रोजगार के स्रोत भी बढ़ रहे हैं।

भारत सरकार ने 2017 में इसे भौगौलिक सूचकांक जीआइ टैग प्रदान किया था। केवाल मिट्टी में इसकी खेती करने से पैदावार में अधिक खुशबू देखी जाती है। जीआइ टैग मिलने के बाद कृषि विभाग और आत्मा किसानों को इसकी खेती करने के लिए उत्साहित कर रही है। 2020-21 में कतरनी धान की खेती 14 सौ एकड़ में की गई थी। 2021-22 में रकवा बढ़कर 17 सौ हेक्टेयर हो गई। इस साल 25 सौ हेक्टेयर में इसकी खेती करने की तैयारी उसी प्रोत्साहन का नतीजा है।

कतरनी धान की खेती करने वाले किसानों को पहले प्रति किलो दर 30 से 35 रुपये ही मिल पाती थी। इस साल इसकी कीमत बढ़कर 55 से 60 रुपये हो गई है। यही कारण है कि किसान फिर से कतरनी धान की खेती करने की ओर बढ़ रहे हैं। कतरनी धान को बढ़ावा देने के लिए नावार्ड ने गोराडीह प्रखंड में किसान उत्पादक कंपनी बनाई है। वहां से किसानों के समूह को वित्तीय सहायता के साथ-साथ बाजार भी उपलब्ध कराया जाएगा।

कतरनी धान की उपज कम होती है। लेकिन अब देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी मांग बढऩे से किसान इसकी खेती में रुचि दिखा रहे हैं। एक बीघा में इसकी पैदावार करीब 13 से 15 क्विंटल तक होती है। यह सुपाच्य होता है। गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी कीमत अन्य चावलों की तुलना में अधिक होती है। भागलपुरी कतरनी धान उत्पादक संघ को जीआइ टैगिंग मिली है। इसकी कीमत भी संघ की ओर से तय की जाती है।

कतरनी धान को बढ़ावा देने के लिए कतरनी धान उत्पादक संघ का गठन किया गया है। संघ को जीआइ टैग मिल गया है। संघ को नाबार्ड की ओर से मदद दिलाई जा रही है। भागलपुरी कतरनी का स्वाद ही अलग है।

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