मालेरकोटला जिले के ब्लााक अमरगढ़ के गांव दियालपुर छन्ना में दो सगे भाई नब्बे एकड़ रकबे में गेहूं-धान सहित मूंगी व मक्के की बुवाई करके अन्य किसानों से दोगुना मुनाफा कमा रहे हैं। वे परंपरागत फसलों गेहूं-धान का चक्र तोड़कर खर्च में कटौती व आमदनी में बढ़ोतरी कर रहे हैं।
किसान परमिंदरपाल व सुरिंदरपाल सिंह सेखों के अनुसार उनके खेत की जमीन सख्त व कंकर वाली होने के कारण गेहूं की उपज 3.25 क्विंटल व धान का 6 क्विंटल प्रति एकड़ थी। जमीन को भुरभुरी बनाने के लिए उसमें रेत भी मिक्स किया। इस पर उनका काफी खर्च हो गया। फिर भी जमीन की हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया।
ऐसे में उन्होंने 8 वर्ष पहले धान व गेहूं के अवशेष को जलाने के बजाय जमीन में खाद के तौर पर इस्तेमाल करने का मन बनाया। इसके लिए सुपर एसएमएस कंबाइन से कटाई करवाकर मल्चर व रोटावेटर के जरिए अवशेषों को भूमि में मिलाने लगे। इस पर उनका 3500 रुपये प्रति एकड़ खर्च हुआ। धीरे-धीरे जमीन भुरभुरी होती गई। जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ने से प्रति एकड़ एक बोरी डीएपी खाद की बचत होने लगी। उन्होंने बताया कि वह दाेनों फसलों के अलावा इस बार तीसरी फसल मूंग की ले रहे हैं। इससे उसे लाभ मिल रहा है।
किसान परमिंदपाल ने बताया कि अवशेष जमीन में लगातार दबाने के बाद देखा कि गेहूं का झाड़ पहले से अधिक है। पहले गेहूं का झाड़ 3.25 क्विंटल प्रति एकड़ था, जो बढ़कर 5.25 क्विंटल हो गया। इसी प्रकार धान का पहले 6 क्विंटल था जो कि अब 7.25 क्विंटल हो गया। इस बार जहां दूसरे किसानों काे गेहूं का झाड़ 3.50 क्विंटल प्राप्त हुआ, वहीं उन्हें गेहूं का झाड़ 4.50 क्विंटल प्रति एकड़ मिला। झाड़ बढ़ने से उसे 3200 रुपये प्रति एकड़ का फायदा हुआ।
किसान परमिंदपाल ने बताया कि अवशेष जमीन में लगातार दबाने के बाद देखा कि गेहूं की उपज पहले से अधिक है। पहले गेहूं की पैदावार 3.25 क्विंटल प्रति एकड़ था, जो बढ़कर 5.25 क्विंटल हो गयी। इसी प्रकार धान पहले 6 क्विंटल था जो कि अब 7.25 क्विंटल हो गया। इस बार जहां दूसरे किसानों काे गेहूं 3.50 क्विंटल प्राप्त हुआ, वहीं उन्हें गेहूं 4.50 क्विंटल प्रति एकड़ मिला। उपज बढ़ने से उसे 3200 रुपये प्रति एकड़ का फायदा हुआ।