उत्तराखंड बीज एवं तराई विकास निगम (टीडीसी) बीज प्रमाणीकरण संस्था को पिछले खरीफ सीजन के विधायन कार्य का भुगतान नहीं कर पाया है। इससे जून से शुरू होनेे वाले टीडीसी के बीज विधायन संयंत्र जुलाई में भी शुरू नहीं हो पाए हैं। इस कारण उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों के किसानों को समय से बीज मिल पाना असंभव सा लग रहा है।
वर्ष 2014 से कुप्रबंधन के चलते घाटे की राह पर चले टीडीसी में वर्ष 2016 में हुए 16 करोड़ रुपये के घोटाले ने निगम की कमर तोड़कर रख दी। वर्ष 2020 में टीडीसी को तब संजीवनी मिली, जब तत्कालीन आईएएस रंजना राजगुरु ने निगम के प्रबंध निदेशक का कार्यभार संभाला। उनके कुशल प्रबंधन से निगम पटरी पर आ गया और जहां बीज उत्पादकों व एजेंसियों को समय से भुगतान मिलने लगा| वहीं कर्मचारियों को समय से वेतन सहित महंगाई भत्ता व एरियर आदि का भुगतान भी किया जाने लगा।
बीज उत्पादकों व एजेंसियों के भुगतान लटकने सहित कर्मचारियों को अभी तक जून का वेतन भी नहीं मिल पाया है। इतना ही नहीं बीज प्रमाणीकरण संस्था को पिछले खरीफ सीजन के विधायन कार्य का भुगतान नहीं होने के कारण जून से चलने वाले टीडीसी के बीज विधायन संयंत्र जुलाई में भी शुरू नहीं हो पाए हैं।
इससे अंत:ग्रहित लगभग 65 हजार क्विंटल बीज को समय से तैयार कर पाना मुश्किल है। ऐसे में उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों के किसानों को समय से बीज मिल पाना असंभव ही लग रहा है। वर्तमान में टीडीसी के पास पिछले रबी सीजन का लगभग 47,117 क्विंटल बीच भी बचा हुआ है। जिसका रिवल्डेशन भी बीज प्रमाणीकरण संस्था की ओर से किया जाना है।
वेतन भुगतान के लिए कर्मचारी कई बार प्रबंध निदेशक जीवन सिंह नगन्याल से गुहार लगा चुके हैं लेकिन उन्हें समय से वेतन नहीं मिल पा रहा है। वर्तमान में टीडीसी कर्मियों को सातवें वेतनमान के अनुसार वेतन न देकर छठे वेतनमान के अनुसार वेतन दिया जा रहा है। इसके अलावा छठवें वेतनमान में डीए की किस्त 203 प्रतिशत है जबकि टीडीसी कर्मियों को 139 प्रतिशत ही डीए का भुगतान किया जा रहा है। इस प्रकार टीडीसी कर्मियों को शासनादेश के विपरीत लगभग आधे वेतन का ही भुगतान किया जा रहा है।