ओडिशा के कई जिलों के किसानों ने धान की खेती से किनारा कर लिया है | धान की बजाय लाल तीखी मिर्च की खेती इनकी पहली पसंद है| मिर्च की खेती से किसानों की आमदनी बढ़ी है| मिर्च की खेती में मेहनत भी कम है आऔर फसल में पानी भी कम लगाना होता है|
इलाके के मिर्च उत्पादकों का कहना है कि- “व्यापारी हमारे गांव में डेरा डाले हुए हैं और हमसे लाल मिर्च खरीदने का इंतजार कर रहे हैं|”
कुचिंडा कृषि अधिकारी पुरुषोत्तम साहू के मुताबिक 10 साल पहले कुचिंडा में करीब 7 हजार एकड़ (2832.799 हेक्टेयर) मिर्च की खेती की गई थी. अब मिर्च की खेती कुचिंडा प्रखंड और पास के बमारा में 12 हजार एकड़ (4856.2277 हेक्टेयर) क्षेत्र में की जाती है. साहू ने कहा कि क्षेत्र में करीब 10,000 किसान मिर्च की खेती करते हैं। महामारी के दौरान चीजें इतनी अच्छी नहीं थीं जब मिर्च की कीमत 80 रुपये प्रति किलो हो गई थी। लेकिन अब सब ठीक है क्योंकि वे 180 रुपये प्रति किलो पर बिक रहे हैं|
कुचिंडा मिर्च को तब और बढ़ावा मिला जब कोच्ची, केरल में भारतीय मसाला बोर्ड (एसबीआई), ने कुचिंडा मिर्च का परीक्षण किया और देश के अन्य हिस्सों की तुलना में इसे गुणवत्ता में कहीं बेहतर पाया| हमने राज्य सरकार से कुचिंडा लाल मिर्च के लिए जीआई (भौगोलिक संकेत) टैग के लिए आवेदन करने का आग्रह किया है।
डुमामुंडा गांव के पबित्रा मांझी के अनुसार- “2021 में मैंने पहली बार एक एकड़ जमीन पर लाल मिर्च बोयी थी और एक लाख रुपये का लाभ कमाया था।” उन्होंने कहा कि फसल कम रखरखाव वाली है और धान की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है, और किसान साल में एक बार इसकी कटाई कर सकते हैं।
किरासन गांव के किसान किरण महापात्रा के मुताबिक लाल मिर्च की भारी मांग है और कई कंपनियां अच्छी कीमत देने को तैयार हैं. 58 वर्षीय किसान ने बताया, “हम में से कई लोग धान की पारंपरिक खेती करते थे, लेकिन अब मिर्च की खेती कर रहे हैं और इसका फायदा उठा रहे हैं।”