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हिमाचल प्रदेश : ‘चाय उत्सव’ से कांगड़ा-चाय को मिलेगी राष्ट्रस्तरीय पहचान

शिमला, कुल्लू , मनाली, डलहौजी जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों पर सूबे की सरकार ‘चाय-उत्सव’ (टी-फेस्टेवल) आयोजन करेगी| चाय-उत्सव का मकसद हिमाचल की चाय को बाज़ार में लोकप्रिय बनाना है| हिमाचल में पैदा

होने वाली चाय दुनिया में ‘कांगड़ा-चाय’ के नाम से प्रसिद्ध है|

राज्य में ‘चाय-उत्सव’ प्रमुख पर्यटन स्थलों पर आयोजित किये जायेंगे| सरकार की मंशा टी-फेस्टेवल के माध्यम से कांगड़ा-चाय को लोगों तक पहुंचाना है| पर्यटन सीजन के दौरान राजधानी शिमला मनाली डलहौजी सहित अन्य स्थानों पर ये फेस्टिवल होंगे। कांगड़ा चाय का उत्पादन दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है।

कांगड़ा चाय कई तरह के औषधीय लाभ प्रदान करती है, लेकिन राष्ट्रीय बाजार में इसे 160 रुपये प्रति किलो मूल्य मिल रहा है। हालांकि प्रदेश में 400 रुपये किलो मूल्य प्राप्त हुआ। मूल्य में असमानता को दूर करने के लिए सरकार प्रयास कर रही है। कांगड़ा जिला के पालमपुर, बैजनाथ, जयसिंहपुर, धर्मशाला, शाहपुर, नगरोटा बगवां में चाय के बगान हैं। इन क्षेत्रों में चाय का 90 प्रतिशत से अधिक उत्पादन होता है।

सरकार ने दिसंबर 2021 में पहली बार पालमपुर में चाय उत्सव का आयोजन किया था। इसमें 400 चाय बागवानों ने हिस्सा लिया। 2021-22 के दौरान 5.6 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र बगानों के तहत लाया गया है। पांच साल में करीब 100 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र इसके तहत लाने का लक्ष्य रखा गया है।

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने कांगड़ा, सुंदरनगर, बरठीं, बजौरा व धौलाकुआं जैसे गैर चाय उत्पादन क्षेत्रों में प्रायोगिक आधार पर 800 पौधों का रोपण किया है। चाय उद्योग में पांच हजार लोगों को रोजगार प्राप्त है। प्रदेश में पैदा होने वाली चाय की 10 प्रतिशत खपत राज्य में होती है, जबकि बाकी 90 प्रतिशत चाय कोलकाता में नीलाम होती है।

गौरतलब है कि वर्ष 2021-2022 के दौरान चार हजार किलोग्राम कांगड़ा चाय हिमाचल से सीधे जर्मनी, इंग्लैंड, रूस व फ्रांस को निर्यात की गई। अब उत्पादित 20 प्रतिशत कांगड़ा चाय को प्रति वर्ष सीधे निर्यात करने का लक्ष्य रखा है।

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प्रदेश सरकार ने इस वर्ष से यूनिवर्सल कार्टन को शुरू किया है। इससे जहां बागवानों को लाभ मिल रहा है, वहीं सेब आढ़तियों को भी इसका फायदा पहुंच रहा है। पहले जहां एक पेटी में 28 से 32 किलोग्राम सेब जाता था, वहीं अब यूनिवर्सल कार्टन के चलते प्रति पेटी 22 से 24 किलोग्राम सेब बिक रहा है। खाली पड़ी जगहों में भी सेब की नई पौध लगाई जा रही है। जिले में हर वर्ष बागवान अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रहे हैं। इस वर्ष भी जिले में सेब से बागवानों को करीब आठ करोड़ की कमाई हुई है।

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