पंजाब में करीब 13 हजार गांव हैं, जिनमें दो लाख से अधिक कुएं हैं। इनमें से ज्यादातर कुओं को मिट्टी व फालतू की चीजों से भर दिया गया है। पंजाब में हर साल औसत 65 सेंटीमीटर बारिश होती है। इसमें से 30 से 40 प्रतिशत वर्षाजल बर्बाद हो जाता है। अगर इन सभी कुओं को खाली करवाकर वर्षाजल से भर दिया जाए, तो इससे न केवल जल की उपलब्धता बढ़ेगी, बल्कि गिरते भूमिगत जलस्तर को भी रोका जा सकेगा।
पानी को लेकर पंजाब कृषि विवि ने सूखे कुंओ को फिर पानी से भरने की एक काबिले तारीफ पहल की है| इसके अच्छे नतीजे भी आ रहे हैं| दूसरे सूबों के लिए यह कदम भी स्वागत योग्य है|
चिंता की बात यह है कि जल स्रोतों के अत्यधिक दोहन व इनके संरक्षण के अभाव के चलते पंजाब में भूमिगत जल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। पंजाब में 150 ब्लाकों में से 117 ब्लाक डार्क जोन में आ चुके हैं। इस वजह से इन क्षेत्रों में 120 से 150 फीट के नीचे पानी मिल रहा है, जिसने भविष्य को लेकर वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है।
पंजाब में भू-जल लगातार नीचे जाने की वजह से ही इस साल मान-सरकार ने सूबे में धान की सीधी बिजाई पर ज़ोर दिया है| सरकार ने किसानों को मोटे अनाज बीजने के लिए कई रियायते भी दी है| धान की सीधी बिजाई से सरकार पानी के साथ बिजली भी बचाने में कामयाब हुई है| गौरतलब है कि एक किलो चावल पैदा करने के लिए करीब 3000 लीटर पानी की जरूरत होती है|
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के वैज्ञानिकों द्वारा गिरते भूजल स्तर को बचाने के लिए की गई पहल के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट आफ सायल एंड वाटर इंजीनियरिंग विभाग की ओर से विशेष प्रोजेक्ट के तहत बेकार पड़े कुओं को पुनर्जीवित करके वर्षा जल संचय किया जा रहा है। इसकी शुरुआत यूनिवर्सिटी परिसर से ही की गई है। पीएयू में आल इंडिया को-आडिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट आन इरीगेशन वाटर मैनेजमेंट के चीफ साइंटिस्ट डा. राजन कुमार अग्रवाल बताते हैं कि यहां 7 कुएं ऐसे थे, जिन्हें वर्षों पहले मिट्टी से भरकर बंद कर दिया गया था। हमने उन कुओं से मिट्टी निकाल कर उन्हें साफ करवाया।
इसके बाद हमने उसमें चार से छह इंच तक पुरानी ईंटों के टुकड़ों की तह बिछा दी, ताकि धरती का कटाव न हो। इसके अलावा एक गड्ढा खोदकर उसे कुएं के साथ जोड़ दिया। फिर गड्ढे से लेकर उसके आसपास के खेतों तक बड़ी पाइप डाली। कुएं को ऊपर से कवर कर दिया, जिससे किसी के इसमें गिरने का खतरा न हो। इसके रख-रखाव में करीब दस हजार रुपये का खर्च आया। फिर पाइपों के जरिए खेत में गिरने वाले वर्षा जल को कुएं में सहेजना शुरू किया। इसके बाद हमने करीब 5 साल तक वर्षा जल से भूजल गुणवत्ता की जांचकी|
इस जांच में पाया गया कि बारिश के पानी से भूजल की गुणवत्ता अच्छी हुई और धरती के नीचे पानी का स्तर दो फुट तक ऊपर आ गया है। पहले यहां 110 फीट की गहराई पर उपलब्ध था, जो अब 108 फीट पर मिल रहा है। इस सफलता के बाद अब हम पंजाब के अलग-अलग जिलों में ट्रेनिंग कैंप लगाकर किसानों को जागरूक कर रहे हैं कि दशकों पहले उनके घरों या खेतों में बेकार कुओं की सफाई करवाकर पीएयू की मदद से वर्षा जल से फिर लबालब भर सकते हैं|
ट्रेनिंग कैंप में बताया जा रहा है कि किस तरह से खेतों में जमा होने वाले अतिरिक्त वर्षा जल को एक पाइप के जरिए बेकार पड़े कुओं में संग्रहित किया जा सकता है। इसकी तकनीक बेहद सस्ती है। किसानों के पास लेबर पहले से होती है, तो कुओं को पुनर्जीवित करने के लिए अलग से खर्च नहीं उठाना होगा।